Book Title: Chetna ka Vikas
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 83
________________ पैदा नहीं होगी या किसी ने बुरा किया तो मन में कोई प्रतिक्रिया नहीं होगी । एक सीमा में होगी, लेकिन वह प्रकट हो उससे पहले जिसे हम अव्यक्त या अप्रकट कहते हैं वह असंक्लेश उस पर हावी हो जाएगा और संक्लेश उभर न पाएगा । असंवेग, असंक्लेश, अप्रमाद की उपलब्धि चेतना की विकसित शान्तिशील स्थिति की परिचायक है । तुम जितने ज्यादा मूर्च्छित रहोगे उतने ही अधिक बुरे विचार आएंगे और बुराइयां करते चले जाओगे । आदमी अपनी उन बुराइयों को भुलाने के लिए नशाखोरी करता है, शराब पीता है ताकि अपने दुःख भुला सके । अब इन्हें कौन समझाए। अभी कुछ दिनों पूर्व ही एक आदमी मुझे मिला, मुंह से दुर्गंध आ रही थी । मैंने कहा, क्या तम्बाकू खाते हो ? कहने लगा साहब, आदत पड़ गई है और ऐसी आदत पड़ गई है कि जब तक जर्दा न खाए, प्रेशर ही नहीं बनता। अब पूछिए उनसे जो तम्बाकू नहीं खाते वे शौच जाते हैं या नहीं ? तम्बाकू का शौच से क्या सम्बन्ध ? क्यों स्वयं को सड़ाने - गलाने में लगे हो ? बीड़ी-सिगरेट पीकर, तम्बाकू खाकर तुमने ऐसी गलत फहमियाँ पाल ली हैं कि तुम जानते ही नहीं कि इनका तुम्हारे शरीर के साथ कोई तालमेल ही नहीं है । यह तो सरासर तुम्हारी धमनियों में जहर घुलता जा रहा है । तुम्हारे मस्तिष्क को इतना गुलाम नहीं होना चाहिए। तुम्हारा अपने शरीर पर इतना भी नियंत्रण नहीं? कैसे-कैसे पागलपन हमने अपने पर हावी कर लिए हैं। ठीक है आप संसार में हैं, विवाह किया है लेकिन पति या पत्नी दस दिन के लिए अलग हो जाए तो रातें निकालनी मुश्किल हो जाती हैं । अरे, तुमने स्वयं को इतना अनियंत्रण में ले लिया है कि तुम्हारा जीवन पति या पत्नी के कारण जीवित लग रहा है। तुम इतने गुलाम हो गए हो? यह तुम अपने पति या पत्नी के नहीं वासना के गुलाम हुए हो । तम्बाकू या सिगरेट के गुलाम नहीं, अपितु अपनी बुरी आदतों के वशीभूत हुए हो । ध्यान यह नहीं है कि एक घंटा बैठ गए और किसी प्रक्रिया या विधि से गुजर गए। व्यक्ति का असली ध्यान यही है कि व्यक्ति के भीतर जब कोई बुरी आदत पनपती है उस पर अपना आत्म नियंत्रण रखे । नहीं खाएंगे, नहीं पिएंगे, देखते हैं क्या मर जाएंगे? मैंने तो यही पाया है कि जो नशाखोरी करते हैं उनके मस्तिष्क के तंतु ढीले पड़ जाते हैं, माइंड लूज़ हो जाते हैं । उन्हें कुछ भी पता नहीं चलता कि वे क्या बोल रहे हैं, क्या कर रहे हैं। अगर किसी ने आकर मुझे खबर दी कि वह आपके बारे में ऐसा अनर्गल बोल रहा था, तो सुनूंगा जरूर, लेकिन पहले जान लेना चाहूंगा कि वह बोलने वाला किन की संगति में है । अच्छा, वह कुसंगति में है: ठीक, कोई बात नहीं, उसका कोई दोष नहीं । फिर चलें, सागर के पार / ७८ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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