Book Title: Chetna ka Vikas
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 97
________________ चैतन्य-ध्यान के जो पांच चरण हैं उनमें पहले चार चरण प्रयत्न हैं, पुरुषार्थ है, चेष्टा है, तब तक ध्यान नहीं सिर्फ प्रयास है और अन्तिम पांचवां चरण ही असली ध्यान है। जहाँ न सांस पर नियंत्रण और न ‘ओम्' का स्मरण, कुछ भी नहीं, जो-जैसा भीतर घटित होता है अहोभाव के साथ उसका स्वीकार है। कुण्डलिनी जागरण के लक्षण क्या है, कैसे महसूस होगा कि कुण्डलिनी जाग्रत हो गई है। - रामनरेश यादव ध्यान एक प्रयोग है और मिस्टर यादव आप स्वयं एक प्रयोगशाला हैं। मेरे देखे धर्म का वही रूप होना चाहिए जिसका अपना प्रयोग हो। जिसमें प्रयोग नहीं, उसका मार्ग रूढ़िवाद का होगा, केवल परम्परा को निभाने का होगा। धर्म और जीवन जहाँ समवेत् होना चाहते हैं वहां धर्म को हमेशा प्रयोगात्मक होना चाहिए। जिन चीजों का प्रयोग होता है अनिवार्यतः उसका परिणाम भी होता है। उसके लक्षण हमें स्वयं को अनुभूत होते हैं। यदि हमारे भीतर कुण्डलिनी-जागरण होता है तो उसके लक्षण हमको दिखाई देंगे। सर्वप्रथम तो कुण्डलिनी क्या है? यह योग-सूत्रों की, योगशास्त्रियों की दी हुई एक शब्दावली है। योग-शास्त्री कहते हैं जैसे सत्-युग घूमकर बैठा है अथवा सोया है या जागा है ठीक इसी प्रकार कुण्डलिनी भी हमारे भीतर सोई रहती है। चाहे वह महिला हो या पुरुष, योगशास्त्र क्या कहता है - पहले मैं वह बताऊंगा। मनुष्य का जो मल-मूत्र स्थान है उन दोनों के बीच कुण्डलिनी का स्थान माना जाता है। यदि कोई व्यक्ति कामोत्तेजित हो गया है तो वह खुद पर कैसे नियंत्रण करे? अपने पांव की दोनों एड़ियों को उन दोनों स्थान के बीच ले जाकर रख दो और अपने पूरे शरीर का भार उस पर रख दो। तीस सैंकड के भीतर-भीतर उसकी उत्तेजना शांत हो जाएगी क्योंकि उसकी कुण्डलिनी का स्थान दब गया, जहाँ से कामोत्तेजना उठ रही है। अब मैं अपनी भाषा में समझाऊं। कुण्डलिनी और कुछ नहीं, यह मनुष्य का ऊर्जा-कुण्ड है। मनुष्य के शरीर में अलग-अलग स्थानों पर ऊर्जाएं रहती हैं। मस्तिष्क ऊर्जा का अलग समूह है, यहाँ अलग स्नायु हैं, अलग कोषिकाएं हैं। मनुष्य का निर्माण मस्तिष्क, हृदय या हाथ-पांवों से नहीं चलें, सागर के पार/६२ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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