Book Title: Chetna ka Vikas
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 95
________________ अनिवार्यतः सही होगा, स्वच्छ व निर्मल होगा। समय बलवान जरूर है, पर परिवर्तनशील है। आज जो चक्का नीचे है कल ऊपर होगा और जो ऊपर है आनेवाले कल को नीचे होगा। कुछ कर्म और कर्म-प्रकृतियां ऐसी होती हैं जो अन्तर्-धरातल के प्रति निरन्तर सचेत रहने से स्वतः नष्ट होती जाएंगी। पर कुछ कर्म ऐसे होते हैं, जिन्हें भोगे बगैर छुटकारा नहीं। हर उपभोग बन्धन है, पर उस उपभोग से कर्म की निर्जरा होती है, वृत्तियों का विसर्जन होता है, जो ध्यान-दृष्टि से, योग-दृष्टि से, सम्यक् दृष्टि से किया जाता है। कुन्दकुन्द ने कहा है योगदृष्टि सम्पन्न व्यक्ति चेतन अथवा अचेतन, जिस भी चीज का सेवन करेगा, भोग-उपभोग करेगा, उससे कर्म विगलित ही होंगे। ध्यान-अनिवार्य मार्ग है योगदृष्टि के लिए, कर्म-मुक्ति के लिए। अजपा जप-ध्यान अधिक प्रभावी है या जप के साथ किया गया ध्यान। यहाँ ध्यान में श्वास की गति तेज क्यों करवाई जाती है? - अखिलेश इन्होंने दो प्रश्न उठाए हैं। चैतन्य-ध्यान में दो कड़ियाँ है - यों तो पांच चरण हैं। पहले हम समझें जप और अजपा जप में क्या फर्क है। जप उसे कहते हैं जिसमें मन की सक्रियता जारी रहती है। मन के द्वारा, मस्तिष्क के द्वारा जिस मंत्र की स्मृति होती रहती है उसे जप कहते हैं। जहाँ मन शान्त हो जाता है और बिना प्रयास के भीतर के होंठ फड़फड़ाते रहते हैं वहाँ अजपा जप होता है। बिन जप किए जहाँ जप, चले बिन बाजा के जहाँ झंकार उठे, बिन बदली के जहाँ फुहार बरसे, वह है अजपा जप। अजपा जप भी प्रभावी है और जप के साथ किया गया ध्यान भी प्रभावी चैतन्य-ध्यान में मैंने जिन चरणों को जोड़ा है उसमें पहले जप है और उसके बाद अजपा जप। जब तक हमारी ‘ओम्' और सांस के साथ सहयात्रा चलती है तब तक जप चलता है। निरन्तर, वह जप गहरे से और गहरा होता जाता है। वैखरी, मध्यमा, पश्यन्ति और परा | परा-मनोविज्ञान के जो चार चरण हैं, चैतन्य-ध्यान में वे चारों-के-चारों चरण हैं। पहले सहज, फिर सांस की मंदता के साथ थोड़ा गहरा, फिर चलें, सागर के पार/६० Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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