Book Title: Chetna ka Vikas
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 93
________________ नहीं चल रहा है तो दो शब्दों में लिखकर बात बता दो। तुम मौन तो ले लेते हो लेकिन उस दरम्यान जितना लिखते हो उससे कम तो बोलने से ही काम चल जाता। मौन लेकर इतना लिखते हो कि बेहतर है बोल ही लो। मौन अपने में जीने के लिए, अपने विचारों को शान्त करने के लिए | बोलने से जो वचन की ऊर्जा खर्च होती है, उसका पुनः संचय हो जाए, यह भाव अगर है तो विचार भी नहीं उठेंगे। मौन मन को शान्त करने में सर्वाधिक सहचर बनेगा। मौन वास्तव में मन की चुप्पी के लिए है। जबान की चप्पी मौन की व्यावहारिकता है, पर मन की चुप्पी मौन का मूल शास्त्र है। मन की मृत्यु का नाम ही मौन है। मौन ही वह कला है, जो समाज में रहकर भ., समाज-मुक्त जीवन जिलाना सिखाता है। हर व्यक्ति को प्रतिदिन दो घंटे मौन जरूर रखना चाहिये और अगर हो सके तो प्रतिमाह तीन दिन का मौन स्वीकार कर लेना चाहिये। यह त्रिदिवसीय मौन वास्तव में संन्यास है, त्रिदिवसीय प्रौषध है। अगर आत्मा के स्वर सुनने है, भीतर का संगीत सुनना है, तो मौन अनिवार्य है। पहले बाहर से मौन, फिर भीतर से मौन। आत्मिक शांति के लिए मौन से बढ़कर कोई उपाय नहीं है। एक बात हमेशा खयाल रखो कि मौन के दौरान अच्छी-से-अच्छी या बुरीसे-बुरी कोई भी घटना घटे, मौन खुलने के बाद उसके बारे में कोई प्रतिक्रिया व्यक्त मत करो। अगर प्रतिक्रिया व्यक्त करने के भाव बने रहे तो मौन की कोई सार्थकता न होगी। तुम्हें किसी ने गाली दी, तुम सोचोगे, ठीक है बन्दे, आधे घंटे बाद मौन खुल जाएगा (हंसी), ईंट का जवाब पत्थर से दूंगा (तेज हंसी) एक-एक शब्द का जवाब दूंगा। तब वह मौन, मौन नहीं, भीतर में क्रोध का विस्फोट है। तब आप बोलकर जितना क्रोध प्रकट करते, उससे सौ-गुना अधिक अपने भीतर संचित कर लेते हैं। इसलिए मौन के दौरान किसी ने कुछ भी कहा, कह दिया होगा। अपने तो अपनी मस्ती में मस्त | हाथी अगर यह सोचने लग जाए कि पीछे कुत्ते भौंक रहे हैं तो हाथी चल नहीं पाएगा। सिर्फ अपने में जीना है। अगर ऐसा है तो मौन सार्थक है। मौन की सही परिभाषा, सही अर्थ, सही लाभ तभी जब स्वयं मौन में होऊं। मेरा मौन ही मैं हूं और मैं मेरी शान्ति में। बाहरी वातावरण से अप्रभावित रहना, भीतर शांति का अलख जगाना - यही मौन के लाभ हैं। चलें, सागर के पार/८८ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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