Book Title: Chetna ka Vikas
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 94
________________ बिना भुगते कर्म से कैसे छुटकारा हो? - अवनी मेहता इतनी भी क्या जल्दी है, भई! (हंसी) मुझे पता है तुम छूट नहीं सकते, अगर मैं उपाय बता दूं तब भी नहीं छूट सकोगे। अगर मैं कह दूं कि गृहस्थी की छोड़कर आ जाओ, नहीं आओगे। हमें अपने कर्मों से ही इतना प्रेम हो गया है कि हम छूटना ही नहीं चाहते। अगर किसी को उम्र कैद हो गई है और बीस साल बाद उसे जेल से निकालोगे तो वह बाहर निकलना नहीं चाहेगा। वह कहेगा बाहर निकलेंगे तो मेहनत करनी पड़ेगी, सौ दुखः सहने होंगे; नहीं, अपने तो यहीं ठीक हैं, बिन मेहनत का भोजन मिल रहा है। रूस में जब लेनिन ने क्रान्ति की और सारे कैदियों को, उम्र कैद काट रहे कैदियों को भी मुक्त कर दिया, लेकिन जानते हैं क्या हुआ? सांझ ढली, रात हुई सुबह सारे कैदी अपने आप ही जेल में लौट आए। कहने लगे, रात में सो ही न पाए। पांव में जब तक जंजीरें न हों नींद ही नहीं आती। जेल ही जिनके लिए घर बन गया है भला, वे उस जेल से कैसे मुक्त हो सकेंगे। मेरे देखे कर्म से मुक्त हुआ जा सकता है। बाहर के संयोगों से मुक्त हुआ जा सके या न हुआ जा सके भीतर के संयोगों से निश्चित रूप से मुक्त हुआ जा सकता है और ध्यान इसके लिए सफलतम प्रयोग है। ध्यान वह प्रयोग है जिसके द्वारा आप अपने कर्मों को, संयोगों को, नियति को स्वयं समझ सकते हैं। बाहरी संयोगों को तो भोगना ही पड़ेगा। अच्छे या बुरे जैसे भी संयोग आते हैं, उन्हें स्वीकार करना पड़ता है। उन्हें बड़े अहोभाव के साथ स्वीकार कर लो। अगर किसी ने तुम्हारी बदनामी कर दी तो उसे भी उतने ही प्रेम से स्वीकार कर लो जितनी अपनी तारीफ को करते हो। कर्म तो तुम्हें तीन दिन तकलीफ देगा, वह तीन मिनट में ही खत्म होना शुरु हो जाएगा। इतना अहोभाव होना चाहिए, इतना स्वागत का भाव होना चाहिए। ठीक ऐसे ही जैसे हमारे घर में अतिथि आता है और जाते समय कुछ डिब्बे मिठाई के देकर जाता है। हम तो यही समझें कि अगर हमारे जीवन में दुष्कर्म का उदय हो रहा है, कर्म आ रहे हैं, प्रतिकूल संयोग, प्रतिकूल नियति का उदय है, हम उनका बड़े प्रेम, अत्यन्त शान्ति और अनन्त धैर्य के साथ स्वागत करेंगे। परिणाम आज नहीं कल चेतना का विकास : श्री चन्द्रप्रभ/८६ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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