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नहीं पहुंच सकोगे । खाली के खाली, रीते पात्र रह जाओगे और अपने ही अर्थ लगा लोगे ।
हर वस्तु के दो पहलू होते हैं - दृश्य और अदृश्य । दृश्य वह जो तुम्हें साधारण आँख से दिखाई देता है । दृश्य भी सभी को एक जैसा नहीं लगेगा । जैसी जिसकी मनःस्थिति, वैसा ही वस्तु-दर्शन । वह उसमें भी अपनी संभावनाएं, अपने विचार, अपने तर्क लगा लेगा । दृश्य तो तुम्हें पुस्तकों, शास्त्रों, कोशों में मिल जाएंगे लेकिन इनसे मूल न हासिल होगा, केवल तुम्हारी तर्कशक्ति बढ़ जाएगी। लेकिन अदृश्य तो जो जीता है उसमें मिलेगा । उसकी अन्तरदृष्टि की जीवन-शैली से अदृश्य बाहर आएगा। तुम्हें उनके शांति के निर्झर, करुणा-मैत्री के स्वर सुनाई नहीं देंगे। तुम मन के मायाजाल में ही इतने खोए हो कि सद्गुरु को पहचान ही नहीं पाते । तुम्हारा अंधकार इतना सघन है कि कोई किरण तुम तक पहुंच ही नहीं पाती ।
मैं वह दृष्टि देना चाहता हूं जो आपको प्रकाश की पहचान दे सके । एक अंधे को कब तक इस पार से उस पार तक पहुंचाते रहोगे ? एक बार पहुंचा दिया, दो बार पहुंचा दिया क्या जिंदगी भर पहुंचाते रहोगे ? बार-बार पार पहुंचाने के बजाय उसे वह दृष्टि दिलाने का प्रयास करो कि वह स्वयं ही इस पार से उस पार, इस पथ से उस पथ पहुंच सके। इसलिए मेरे पास न कोई तंत्र है, न मंत्र है, मेरे पास तो वह कला है जो दृष्टि खोल सके। वह जानकारी है, वह सम्बोधि है कि जब दृष्टि खुलती है तो अंधकार में भी चल सकते हो और अगर दृष्टि नहीं है तो प्रकाश चाहे कितना भी अधिक क्यों न हो हर राह पर अंधकार ही रहेगा । प्रकाश की पहचान के लिए दृष्टि जरूरी है । अंधे के लिए हर प्रकाश अंधकार है। आपके पास आंखें हैं । प्रकाश ही नहीं अंधकार को पहचानने के लिए भी आंखें चाहिए। आंखों के कारण ही प्रकाश और अंधकार का अर्थ है । हम सोचते हैं कि अंधे के लिए तो सब अंधकार है, पर नहीं । उसके लिए न प्रकाश है, न अंधकार है। दोनों ही नहीं है । अंधकार हो या प्रकाश, दोनों के लिए ही दृष्टि अनिवार्य शर्त है ।
हमारे जीवन में ऐसी कौनसी संभावना है, ऐसा कौनसा तत्व है जिसे हम भगवान कह सकें, प्रभु कह सकें, भगवान के रूप में पहचान सकें? क्या हमारा यह शरीर है जिसे हम प्रभु कह सकें ? नहीं, इस शरीर को हम मंदिर कह सकते हैं पर प्रभु नहीं । यह शरीर द्वार हो सकता है पर परमात्मा नहीं । केवल हमें ही नहीं पशुओं को भी शरीर मिला है। पशु भी शरीर वाले होते हैं । तो क्या हमारे
चलें, सागर के पार / ७४
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