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प्रवाहित होती है वही मन है । मन का अर्थ है संकल्प-विकल्प करना, स्मृति और चिन्तन करना, और कल्पना करते रहना । संकल्प का अर्थ है बाह्य पदार्थों के प्रति ममत्व का जगना । विकल्प का अर्थ है - मैं सुखी, या दुःखी हूँ, आह! मुझे पीड़ा है - यही विकल्प है । अतीत की बातों को याद करना स्मृति है । भविष्य के बारे में सोचते रहना कल्पना है। अपने वर्तमान की अनुप्रेक्षा करना चिन्तन है । मन का सम्बन्ध त्रैकालिक है । वह अतीत, भविष्य और वर्तमान से जुड़ता रहता है। यदि मन अतीत से जुड़ता है तो वह चित्त से जुड़ जाता है । भविष्य की कल्पना करने पर वह बुद्धि के साथ सांयोगिक होता है। जब मन चिन्तन करता है, वर्तमान में जीता है तो मन की समाप्ति हो जाती है सिर्फ बुद्धि सक्रिय रहती है।
हमारे भीतर की, चेतना की ऊर्जा जब चित्त से संयुक्त होती है तो अतीत की कल्पनाएं उठेंगी, बीती हुई बातों की याद आएगी। जब मन भविष्य के साथ जुड़ेगा तो हम सिर्फ कल्पना करते रह जाएंगे । मन आलोचनात्मक होता है, कालिक होता है । जो वर्तमान की विपश्यना करता है, अनुप्रेक्षा करता है, वही व्यक्ति मूलतः अपने आप में जी सकता है। बीत गया सो बीत गया और जो नहीं आया उसके लिए फिकर किस बात की ? लाख कोशिशों के बाद भी बता हुआ समय वापस नहीं आता। रूठा हुआ देवता तो मनाया जा सकता है लेकिन गया हुआ वक्त कभी वापस नहीं आता । जो चीज लौटकर नहीं आती उसके लिए क्यों स्वयं को इतना लगाना ? बीता, सो, गया । जो आया ही नहीं, जो अभी खुद ही, होनी के गर्भ में है, उस कल के बारे में क्या इतना सोचना ? हम सोचेंगे, सार्थक करेंगे अपने वर्तमान को । जो अपने वर्तमान को सार्थक करता है उसका भविष्य भी सार्थक होता है। जिसका वर्तमान ही निष्फल है वह भविष्य कैसे सार्थक कर पाएगा? जिसने अपने वर्तमान को स्वर्ग न बनाया वह क्या मरकर स्वर्ग जा पाएगा? जो जीता ही नर्क में है वह मर के स्वर्ग पाए यह मुश्किल है ।
जीवन को स्वर्ग बनाना होता है, धरती का मन्दिर बनाना होता है, तानपूरे का संगीत बनाना होता है । न अतीत, न भविष्य; हम जिएंगे वर्तमान में । हमें जो जीवन मिला है उसे अभी, आज और पूर्ण अहोभाव के साथ जिएंगे। हम जितने अधिक अहोभाव के साथ जिएंगे उतना ही हमारी लेश्याओं का शुद्धिकरण होगा ।
स्वर्ग-नर्क, धर्म-अधर्म, पाप-पुण्य इनका सम्बन्ध मरने के बाद नहीं, हमारे जीवित रहते है। मरने के बाद स्वर्ग में जाएंगे या नर्क में, यह हम नहीं जानते,
चेतना का ऊर्ध्वारोहण / ३८
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