Book Title: Chetna ka Vikas
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

View full book text
Previous | Next

Page 54
________________ दूसरों को भी गड्ढे में ले गिरेंगे। मेरे अनुसार इससे अधिक मिथ्यावाद और कोई नहीं है । अगर नहीं जानते स्पष्ट रूप से कह दो मेरे प्रभु! मैं यह नहीं जानता। कोई व्यक्ति दस वर्ष तक तुम्हारे साथ चले, अपनी श्रद्धा को लंगड़ी मारे इससे तो बेहतर है तुम इससे पहले ही स्वयं को उससे अलग कर लो । मेरे लिए बंधन का मूल्य नहीं है । मेरे लिए प्रेम का, स्नेह का मूल्य है । 1 अहिंसा की यही सकरात्मकता है । मेरा स्नेह सदैव आपके साथ है । मेरा तुम्हें यही संदेश है : 'अप्प दीपो भव' । अपने दीप आप स्वयं बनिए । जैसे मेरे पास आकर आप अपने ध्यान को साध लेते हैं, जब उतना ही ध्यान आप अपने घर में भी करने लगेंगे, वैसी साधना सधने लग जाएगी उस दिन के बाद मेरी जरूरत नहीं होगी। उसके बाद आपको स्वयं की जरूरत होगी। जब तक ऐसा नहीं होता मेरी अनिवार्यता आपके लिए बनी रहेगी । और जब तक अनिवार्यता है, मेरी सेवाएं आपके लिए हाजिर हैं । क्या जीवन का लक्ष्य एक ही होना चाहिए? यदि एक ही हो तो क्या मन में पछतावा नहीं रहेगा कि हम अपनी दूसरी क्षमताओं, प्रतिभाओं को दबा गए, उभार नहीं पाए ? रश्मि मालू, जीवन के विकास के लिए मनुष्य का लक्ष्य तो एक ही होना चाहिए। अगर दस लक्ष्यों तक पहुंचना चाहोगे तो कहीं भी नहीं पहुंच पाओगे। क्या आपने अपनी मां से यह बात नहीं सुनी कि सात मामाओं का भानेज भूखा रहता है । सात मार्ग हो सकते हैं लेकिन मंजिल तो हर पगडंडी की एक ही होती है । अगर एक मार्ग से जा रहे हो और दूसरी ओर जाने की इच्छा भी हो जाए, तो उस मार्ग का आनन्द भी ले आना, पर लक्ष्य का हमेशा स्मरण रखना । जीवन के मार्ग से गुजरते हुए दस रास्तों को अपना भी बैठे तो कोई खतरा नहीं अगर लक्ष्य विस्मृत न किया । लक्ष्य ही अगर चूक गया तो भले ही सीधे रास्ते पर भी चले जाओगे कहीं नहीं पहुंचोगे । लक्ष्य निरन्तर स्मरण रखना चाहिए । एक सम्राट दस हजार रानियों के बीच रहकर, राज्य में अपराध और दण्ड की व्यवस्था कायम करने के बावजूद वह स्वयं की मुक्ति का लक्ष्य रखना Jain Education International चेतना का विकास : श्री चन्द्रप्रभ / ४६ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114