Book Title: Chetna ka Vikas
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 73
________________ है, तो पिंजरे के द्वार अनिवार्यतः खुलते हैं, निरभ्र गगन में मुक्त विहार होता है - आज भी, भविष्य में भी, शाश्वत । ध्यान, धारणा और एकाग्रता का क्या अर्थ है? . पंतजलि ने योगसूत्र में योग के आठ अंग वताए हैं। ध्यान और धारणा उन्हीं के चरण हैं। योग के आठ अंग हैं - यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि ।। झूठ न बोलना, हिंसा, चोरी न करना, आवश्यकता से अधिक परिग्रह न रखना, मैथुन का सेवन न करना, उनकी मर्यादा रखना यम हैं। पवित्रता, संतोष, तपस्या और ईश्वर-प्रणिधान नियम के अंग हैं। पवित्रता के लिए जल-स्नान से शारीरिक पवित्रता होती है। स्वाद-त्याग से इन्द्रिय की पवित्रता है और क्रोध-कषाय से मुक्त होने पर आंतरिक पवित्रता होती है। सम और विषम दोनों परिस्थितियों में अपने मस्तिष्क को संतुलित रखना ही संतोष है। स्वाध्याय अर्थात् उन शास्त्रों का अध्ययन करना जिनसे जीवन मूल्यों का निर्माण होता है या स्वयं का आत्म-चिन्तन करना। जीवन को जीते हुए जब संघर्ष की स्थिति आ जाए तो उस स्थिति को हंसते-हंसते स्वीकार करना ही तपस्या है। नियम का पांचवां अंग है ईश्वर-प्रणिधान अर्थात् ईश्वर के प्रति भक्ति । योग का तीसरा अंग है आसन । जिस बैठक में आप सुख-सुविधा पूर्वक लम्बे समय तक बैठ सकें, उस बैठक का नाम ही आसन है । और प्राणायाम, अपनी प्राणवायु को अपनी श्वास को एक संतुलन और तारतम्य प्रदान करना है। प्राण + आयाम । आयाम का अर्थ है सीढ़ी । सोपान । प्राण हम भीतर ले रहे हैं, लेकिन भीतर ले जाकर रोकते हैं और बाहर छोड़ते हुए भी रोकते हैं। बाहर और भीतर रोककर हम वायु को आयाम, सोपान देते हैं। हम दो श्वासों के मध्य जितना अधिक अवकाश देते हैं उतने ही हमारे विकल्प कम होते हैं, समाप्त होते हैं। श्वास के साथे हमारी प्रत्येक नाड़ी, चित्त, मन सभी सक्रिय हो जाते हैं। यदि हमने प्राणायाम के मध्य, दो श्वासों के बीच अवकाश रखा तो दो विकल्पों में अवकाश रहेगा और हम निर्विकल्प होंगे। प्रत्याहार का अर्थ होता है अपने चित्त को सांसारिक क्रिया और प्रतिक्रिया से लौटा लाना। जिसे महावीर ने प्रतिक्रमण कहा है वही पंतजलि की परमात्मा : चेतना की पराकाष्ठा/६८ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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