________________
उनकी तो कोई स्मृति ही नहीं है। मैं तो कहूँगा चल रहे हो और अनजाने में कोई चींटी भी मर गई तो यह भी गलती हो गई। आपकी गर्दन पर कोई मक्खी बैठी है और अनजाने में उस पर हाथ उठा दिया, भले ही वह न मरी फिर भी गलती हो गई। गलती होना स्वाभाविक है। मनुष्य के जीवन में बहुत गलतियाँ और भूलें भरी पड़ी हैं। हम अपना ध्यान गलतियों पर न दें। अपने जीवन में अधिक गुण और सद्गुण कैसे आ सकते हैं इस पर हम अपना ध्यान केन्द्रित करें। अगर अंधकार से जूझते रहोगे तो अंधकार से कभी मुक्त नहीं हो पाओगे। अंधकार से उबरने के लिए प्रकाश की क्रान्ति की जरूरत है। एक दीप जलाओ, अंधकार अपने-आप मिटेगा। गलतियाँ होनी स्वाभाविक हैं लेकिन भविष्य के लिए संकल्प कीजिए मैं गलतियों को पुनः नहीं दोहराऊंगा और अगर गलती हो जाए तो आंसू मत बहाइए। क्योंकि इससे कोई प्रायश्चित नहीं होगा। पहले अपना मन हल्का कीजिए। जिस पर आपका विश्वास हो चाहे वह आपका मित्र हो, परिवार का सदस्य हो, आपका गुरु हो उसे अपनी गलती कह दीजिए ताकि मन हल्का हो जाए। मन हल्का कीजिए और अपने जीवन में गुणों की, प्रकाश की क्रान्ति को अधिक से अधिक लाने की चेष्टा कीजिए। अपने अवगुणों को अधिक याद मत कीजिए, अपने गुणों को याद कीजिए और उन्हें बढ़ाने का प्रयास कीजिए। गुण आएंगे, अवगुण स्वयं ही हटते चले जाएंगे। प्रयास गुणों के लिए हों, अवगुणों के प्रायश्चित के लिए नहीं। गुणों का मंथन करें, ताकि जीवन अमृत हो। दीप जलाएं, ताकि अंधकार खुद मिटे । चलो, प्रकाश की ओर, अमृत की ओर, अमरत्व की ओर ।
शक्ति-जागरण होने पर आपने स्वयं को अतिशीघ्र मुक्त कर लिया । क्या शक्तिपात की गुरु की साधना में कोई उपयोगिता नहीं? क्या गुरु की कृपा कुछ नहीं होती? क्या हम स्वयं गुरु बन जाने के सक्षम हो जाते हैं? पहली बात, शक्ति के जागरण पर स्वयं को आपने अतिशीघ्र मुक्त कर लिया। बंधन मुझे पसंद नहीं। वह बंधन चाहे संसार का हो, परिवार का हो या अध्यात्म का भी क्यों न हो। यह बंधन ही तो, जिसके चलते हम कहते हैं यह मेरा मंदिर, यह तुम्हारा मंदिर, यह मेरी मस्जिद, यह तुम्हारा
चेतना का ऊर्ध्वारोहण/४६
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org