Book Title: Chetna ka Vikas
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 34
________________ में रहते हैं। हमारे शैशव में प्रभु है। जब कोई इतना बड़ा होकर अपने शैशव को फिर से पा लेता है तो उसके हृदय पर परमात्मा का अवतरण हो जाता है। कोई प्रसव-पीड़ा से गुजरे और छटपटाहट न हो, आवाज न निकले, यह कैसे सम्भव है? जी भी घबराएगा, दिमाग में खिंचाव भी होगा लेकिन गुजरना तो पड़ेगा। बिना गुजरे कोई भी व्यक्ति मां नहीं हो सकता। भीतर की संतान को पैदा करने के लिए इस प्रसव-पीड़ा को सहना होगा। भीतर के शून्य में उतरना होगा, आसमान में उड़ना होगा। संभव है आने वाले कल में आप खूब चीखें-चिल्लायें - मैं गधा हूँ, मैं हाथी हूँ, न जाने क्या-क्या कह बैठें। इस पशुत्व को ही तो पहचानना है। यह भी आत्मज्ञान का एक चरण है। जैसा कि कल भी तुमने देखा था। भीतर के अज्ञान और पशता को पहचानना ही जीवन-निर्माण का पहला कदम है। बगैर पशु की पहचान के वास्तविक मनुष्य का जन्म ही नहीं है। इसलिए शरीर कंपता है कंपने दीजिए। हाँ, आज शाम को आप खड़े होकर ध्यान कीजिएगा, तब आप नाचेंगे। मीरा भी नाची थी, चैतन्य और सूर भी नाचे थे। जब तक अहोनृत्य न जगा, तब तक ध्यान से क्या गुजरे! मेरे आपको बहुत-बहुत प्रणाम हैं कि पहले ही चरण में आप कुछ हिले, कुछ कंपे । एक छोटी सी कंकरी ने सारे तालाब को आंदोलित कर दिया। धन्यभाग उस कंकरी का, जिसने जगाया, तालाब को आंदोलित किया। आत्मा और चित्त क्या है? चित्त चेतना से सक्रिय होता है और चेतना का मूल स्रोत हमारी अपनी आत्मा है। आत्मा अर्थात् हमारे जीवन की ऊर्जा, हमारा अपना जीवन, जीवन की शक्ति और प्राण। चित्त का तो धीरे-धीरे विकास होता है। चित्त का निर्माण आत्मा के साहचर्य के साथ होता है। लेकिन जैसे-जैसे चित्त के परमाणु समाप्त होते चले जाते हैं, चित्त ठंडा हो जाता है, शांत हो जाता है और आत्मा जाग्रत हो जाती है। चित्त जब दबता है, ठंडा पड़ता है तब जो चेतना जाग्रत होती है, हमारी आत्मा सक्रिय होती है। इसे हम अपने मस्तिष्क के अग्रभाग में उसकी संवेदना को सहज रूप से अनुभव कर सकते हैं। अपने भीतर उभरते शून्य में, स्वयं के आकाश चेतना का विकास : श्री चन्द्रप्रभ/२६ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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