Book Title: Chetna ka Vikas
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 26
________________ जिससे यह सक्रिय रहता है। चित्त से जो वृत्ति पैदा होती है उस वृत्ति का नाम ही 'मन' है। मन के द्वारा चित्त की आपूर्ति होती है। मन से ही चित्त की अनुभूति होती है। आज का मनोविज्ञान सिर्फ ‘माइंड' (मन) तक पहुंचा है। मैं चाहता हूँ यह मनोविज्ञान और अधिक विस्तृत हो । उसका ज्ञान, उसकी पहुंच केवल ‘माइंड' तक ही सीमित न रहे, वह ‘साइक' (चित्त) तक भी पहुंच जाए। हमें मन के पार भी झांकना होगा कि आखिर ये अच्छे और बुरे संस्कार कहाँ से आते हैं? हमने नहीं चाहा कि हमारे भीतर विकार उठें फिर भी ये विकार कहाँ से उठ रहे हैं? हमने नहीं चाहा कि हम क्रोध करें फिर भी यह क्रोध कहाँ से आ रहा है? आप सोचकर हैरान होंगे कि आप किसी का बुरा नहीं करना चाहते फिर भी ये बुरे-बुरे विचार कहाँ से आ जाते हैं? ये सब हमारे चित्त से आते हैं। कहीं और से नहीं, हमारे भीतर से ही आते हैं। अपनी हर अच्छाई या बुराई के जिम्मेदार हम स्वयं हैं। हमारे मन का स्थान वृहद् मस्तिष्क में है। मस्तिष्क के तीन भाग हैं - अग्र मस्तिष्क, मध्य मस्तिष्क और पृष्ठ मस्तिष्क । मध्य मस्तिष्क जिसे वृहद् मस्तिष्क भी कहते हैं, यही हमारे मन का स्थान है, मुख्य केन्द्र है। मन और मस्तिष्क दोनों एक ही स्थान पर रहते हैं। मस्तिष्क का सम्बन्ध हमारे शरीर और विकल्पों से है जबकि मन का सम्बन्ध केवल बाहर से है। हमारे शरीर में दो ज्ञान-केन्द्र हैं - मस्तिष्क और मेरुदण्ड (रीढ़ की हड्डी)। मस्तिष्क में ज्ञानग्राही ग्रन्थियाँ होती हैं और मेरुदण्ड के आस-पास ज्ञानवाही ग्रन्थियाँ होती हैं। मस्तिष्क में दो केन्द्र हैं - ज्ञान-केन्द्र और क्रिया-केन्द्र । ज्ञान-केन्द्र ग्रहण करता है और क्रिया-केन्द्र अमुक-अमुक क्रिया और गतिविधि को करने का निर्देश देता है। जैसे मान लीजिए हम चल रहे हैं और चलते-चलते पांव में कांटा लग गया। कांटा लगते ही मस्तिष्क में उसकी संवेदना पहुँची और हमें ज्ञान हुआ कि मेरे पांव में कांटा लगा और तत्काल क्रिया-केन्द्र को संकेत मिलेगा, वह तुरंत सक्रिय होकर हाथ को आदेश देगा कि कांटा निकालो और हाथ अपने-आप वहाँ तक चला जाएगा। कांटा निकलेगा और अब उसकी संवेदना समाप्त हो गई। इस प्रकार हमारे ज्ञानवाही और ज्ञानग्राही केन्द्र सदा सक्रिय रहते हैं। अब मन का कार्य शुरु होता है। कांटा निकल गया, अब हम चल रहे हैं, और मन शुरु हो जाता है, पांच साल पहले भी ऐसा कांटा गड़ा था, फिर भी गड़ सकता है। मस्तिष्क ने अपना काम पूरा कर लिया पर मन का शुरु हो जाता चेतना का विकास : श्री चन्द्रप्रभ/२१ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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