Book Title: Chaturvinshati Stotra
Author(s): Mahavirkirti
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti

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Page 11
________________ (sin) ज्ञान होता है, गुणों के ज्ञान होने पर उन्हें आत्मसात् कर संयम धारण करने की भी इच्छा बलवती होगी और यही वह स्थिति होगी जब हम मोक्षमार्ग पर पहला कदम बढ़ायेंगे। अत: इस ग्रन्थ का बारम्बार स्वाध्याय अवश्य करना चाहिए ज्ञान के इस भण्डार से कुछ अंश हमें अवश्य प्राप्त होगा ऐसा मेरा विश्वास हैं I हिन्दी टीका कर्ती परम् पूज्य प्रथम गणिनी आर्यिका 105 श्री विजयामती माताजी का जन्म राजस्थान के जिला भरतपुर की कामां नगरी में हुआ आपने चारित्र चिंतामणि भारत गौरव प्राप्त 108 आचार्य श्री विमल सागर जी महाराज से आर्यिका दीक्षा ग्रहण की। 20वीं शताब्दी के प्रथम मुनि परम्परा के प्रणेता चारित्र चक्रवर्ती मुनि कुञ्जर समाधि सम्राट 108 आचार्य श्री आदिसागरजी "अंकलीकर" महाराज के पट्टाधीश तीर्थभक्त शिरोमणी बहुभाषी 108 आचार्य श्री महावीर कीर्ति जी महाराज ने इस बीसवीं शताब्दी में सर्वप्रथम "गणिनी " पद आपको प्रदान किया । आप महान् विदूषी हैं आपने अनेकों ग्रन्थ सरल सुगम भाषा में लिपिबद्ध किये हैं । आपकी प्रेरणा से आपके द्वारा लिखित अनेक ग्रन्थों में से लगभग 26 ग्रन्थों का प्रकाशन अपनी इस संस्था श्री दिगम्बर जैन विजया ग्रन्थ प्रकाशन समिति झोटवाड़ा जयपुर से प्रकाशित किये गये हैं। ग्रन्थ के संस्कृत श्लोंको की शुद्धि एवं प्रूफ संशोधन के लिए मैंने आदरणीय पं. श्री सनत कुमारजी जैन श्री दिगम्बर जैन संस्कृत महाविद्यालय जयपुर से सम्पर्क किया उन्होंने अपना पूर्ण सहयोग कर दिगम्बर जैन संस्कृत महाविद्यालय जयपुर के प्रोफेसर श्री प्रभुदत्तजी से मेरा परिचय कराया तथा इस कार्य को कराने का अनुरोध किया | आपने एक माह से भी अधिक समय हमें प्रदान किया और श्लोकों का अध्ययन कर हमें वापिस लौटाया मैं दोनो विद्वान पण्डितों का आभारी हूँ । ग्रन्थ के प्रकाशन में समिति के पास बची उपलब्ध राशि का उपयोग किया गया है । ग्रन्थ की प्रूफ रीडिंग का विशेष ध्यान रखा गया है परन्तु ग्रन्थ के विषय की अपेक्षा से मेरा ज्ञान अत्यन्त अल्प है, जिसके कारण त्रुटियां रहना संभव है । अतः मैं आपसे विनम्र शब्दों में क्षमा याचना करते हुए निवेदन करूंगा कि त्रुटियों को सुधारकर अध्ययन करने का कष्ट करें । ग्रन्थ के प्रकाशन में जिन कार्यकर्ताओं ने विशेषकर श्री नाथूलाल जी जैन प्रबन्ध सम्पादक महोदय ने जिन्होंने अपना अमूल्य समय देकर सहयोग प्रदान किया है उनका मैं आभारी हूँ । अन्त में गुरुवर के चरम कमलों में मेरा बारम्बार नमोस्तु नमोस्तु । आशीर्वाद की आकांक्षा लिए हुए RA गुरु भक्त महेन्द्र कुमार जैन 'बड़जात्या' (सम्पादक)

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