Book Title: Chaturvinshati Stotra Author(s): Mahavirkirti Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti View full book textPage 9
________________ मनुष्य भव का सार स्वाध्याय और तप है। दोनों ही उत्कृष्ट तप हैं। बाँचने से, प्रश्नोत्तर द्वारा वस्तु के स्वाभाविक ज्ञान से, बार-बार याद करने से ज्ञान बढ़ता है और अज्ञान नष्ट होता है। अतः प्रस्तुत ग्रन्थ की मनोयोग पूर्वक बार-बार स्वावध्याय करो। इसमें जिनागम का रहस्य भरा पड़ा है। ___ परिग्रह की लुब्धता साधक की सर्वोपरि बाधा है। जहाँ तक बने पर पदार्थों से छहदाओ। निशानी महदेगी उतना ही स्वामा की ओर प्रवृत्ति होगी। वस्तुतः मनुष्य का जितना-जितना परिग्रह बढ़ता है उसका उतना-उतना दुःख भी दिनदूना और रात चौगुना बढ़ता है। यदि मोक्ष की ओर रूचि है, सच्चे सुख की कामना है तो जहाँ तक हो सके, परिग्रह कम करने का पुरुषार्थ करो। परिग्रह तब तक नहीं घट सकता जब तक इच्छाओं का दमन न हो। आत्मा की निर्मलता ही मोक्ष का मार्ग है। ___यदि इच्छाओं का दमन करना चाहते हो तो प्रस्तुत ग्रंथ की बराबर स्वावध्याय करो। उक्तंच आपदा कथितः पन्था, इन्द्रियणामसंयमः । तज्जयः संपदा मार्गों, येनेष्ट तेन गम्यताम्॥ संयम जीवन है और असंयम मृत्यु है। इन्द्रियों को जीतना ही संयम है और सम्पदा का मार्ग है। असंयम आपदाओं दु:खों का मार्ग है। स्वाध्याय से ज्ञाननेत्र खुलते हैं। ज्ञाननेत्र खुलने से सुखों का मार्ग प्रशस्त होता है। ज्ञाननेत्र स्वाध्याय करने से खुलते हैं। अतः इस ग्रन्थ का पुनः पुनः स्वावध्याय करो। इस स्तुति ग्रन्थ में जैनागम का रहस्य भरा हुआ श्रेयांस तकुमार जैन शास्त्री श्रुतपारंगत, विद्याभूषण श्रेयांसकुमार जैन शास्त्री, एम.ए. साहित्य रत्न किरतपुर 246731; (बिजनौर) उ.प्र.Page Navigation
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