Book Title: Chaturvinshati Stotra
Author(s): Mahavirkirti
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 7
________________ प्रस्तावना प्रस्तुत ग्रन्थ का नाम " चतुर्विंशति स्तोत्र" है। इस ग्रन्थ में 25 अध्याय हैं और प्रत्येक अध्याय में पच्चीस-पच्चीस श्लोक हैं। कुल श्लोक संख्या 625 है। इसके प्रथम अध्याय में ही चौबीस तीर्थंकरों की स्तुति की गई है और प्रत्येक स्तुति में प्रत्येक तीर्थंकर की यथानाम तथा गुण का सार्थक विवेचन है। प्रत्येक स्तुति भक्ति से ओतप्रोत है । वर्तमान वैज्ञानिक युग में जहाँ जो दुःख और अशान्ति में जी रहे हैं। दुखों और अशान्ति से किस प्रकार छुटकारा मिले, इसका बड़ा ही युक्तियुक्त विवेचन है। दुःखों से छूटने का अमोध उपाय आत्मानुभव, आत्मचिन्तन और आत्ममन्थन है। इन गुणों की प्राप्ति का अमोद्य उपाय इन्द्रिय विषयों से विरक्ति, विषय कषायों का त्याग और मंद बुद्धि को तिलाञ्जलि देना है | मनुष्य भव का सार तप हैं। प्रस्तुत ग्रन्थ में इन्हीं का विशद विवेचन हैं, और अनेकान्त शैली के द्वारा वस्तु स्वरूप का मार्मिक वर्णन हैं और एकान्तवाद का खण्डन है। प्रस्तुत ग्रन्थ ज्ञान का भण्डार हैं, जैन धर्म का रहस्य खोलने की यह कुंजी है। जिन भव्य प्राणियों को इस संसार शरीर भोगों के कीचड़ से निकलने की तीव्र अभिलाषा है। इन सभी दुःखों से छुटकारा पाने के लिए लालायित हैं, उन्हें इस ग्रन्थ की पुनः पुनः स्वाध्याय करना नितान्त आवश्यक है। दुःखों की जड़ मोह है। उसका उन्मूलन हुए बिना दुःखों से छुटकारा मिलना सम्भव ही नहीं है। जब तक राग- -द्वेष का बाह्य व्यापार चालू है, तब तक आन्तरिक मलिनता छूटना असम्भव है। वस्तुतः सब प्रकार की विपत्ति रूपी फल कों देने वाले संसार रूपी विषवृक्ष का अङ्कुर राग-द्वेष है। इन रोगों के निवारण करने वाला प्रस्तुत ग्रन्थ हैं। अतः प्रस्तुत ग्रन्थ का स्वाध्याय नितान्त आवश्यक है। यह ग्रन्थ इन रोगों के निवारण करने वाला अकारण वैद्य है। इस ग्रन्थ का पुनः पुनः स्वाध्याय करने से दुःखों से छुटकारा मिलना अवश्यंभावी हैं। शर्त यही है स्वाध्याय करके संयम को जीवन में धारण करें और सांसारिक इच्छाओं का शनैः शनैः त्याग करते चलें ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 ... 327