Book Title: Chaturvinshati Stotra
Author(s): Mahavirkirti
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti

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Page 6
________________ (vii) स्नेहल वरद आशीर्वाद से प्रेरित और गुरूभक्ति से असाध्य को सुसाध्य करने का साहस किया है। इसमें अनेकों त्रुटियों का होना स्वाभाविक है । फिर भी श्री 1008 वासुपूज्य भगवान के चरण सान्निध्य से भी जैसा भाव जागृत हुआ उसी को भावार्थ रूप में आपके समक्ष उपस्थित किया है। परम् पूज्य मोक्षमार्ग प्रदर्शक सिन्धानी मातेश्वरी अक्षम्य अपराध को क्षमा कर विधुद्वदवर्ग इसे अधीत कर कमियों को सुधार लें तथा मुझे सावधान भी करें। आशा है सभी इसे भक्ति से पढ़ेंगे। चिन्तन और मनन कर जिन आज्ञा प्रमाण अपने जीवन को ढालने का प्रयास करेंगे। इन्हीं भावनाओं के साथ परम वीतरागी दिगम्बर गुरुओं के चरणाम्बुजों में नमोस्तु 3 । उत्कृष्ट, अचल अमर ज्योति प्रदाता माँ सरस्वती देवी को नमोऽस्तु 3 ॥ __ ओं जयतु जिनशासनम्॥ मेरी आत्म ज्योति जगे, चारित्र निर्मल और ज्ञान प्राञ्जल हो इसी भावना के साथ विराम लेती हूँ। प्र.ग. आ. विजयामती 14.11.99 श्री चम्पापुर सिद्धक्षेत्र (नाथनगर)

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