Book Title: Charananuyoga Part 2 Author(s): Kanhaiyalal Maharaj Publisher: Agam Anuyog Prakashan View full book textPage 6
________________ श्यकता है । अस्तु, चार । वर्णन की दृष्टि से चारित्राचार सबसे विशाल है। मैं अपनी शारीरिक अस्वस्थता के कारण, विद्वान प्रस्तुत भाग में ज्ञानाचार एवं दर्शनाचार का वर्णन तो सहयोगी की कमी के कारण, तथा परिपूर्ण साहित्य की २०४ पृष्ठों में ही आ गया है। चारित्राचार का वर्णन अनुपलब्धि तथा समय के अभाव के कारण जैसा संशो- प्रथम भाग के ५१० पृष्ठ तथा द्वितीय भाग के २५६ पृष्ठ धित शुद्ध पाठ देना चाहता था वह नहीं दे सका, फिर यों सर्व ७६६ पृष्ठ में आया है। तपाचार का विषय ११४ भी मैंने प्रयास किया है कि पाठ शुद्ध रहे, लम्बे-लम्बे पृष्ठों में समाया है किन्तु वीर्याचार का विषय ६२ पृष्ठों समास पद जिनका उच्चारण दुरूह होता है, तथा उच्चा- में ही सम्पादित हो गया है। रण करते समय अनेक आगम पाठी भी उच्चारण-दोष से मैंने इस बात का भी ध्यान रखा है कि जो विषय प्रस्त हो जाते हैं। वैसे दुरूह पाठों को सुगम रूप में आगमों में अनेक स्थानों पर आया है, वहाँ एक बागम प्रस्तुत कर छोटे-छोटे पद बनाकर दिया जाये व ठोक का पाठ मूल में देकर बाकी आगम पाठ तुलना के लिए उनके सामने ही उनका अर्थ दिया जाय जिससे अर्थबोध टिप्पणियों में दिये जायें। जिससे तुलनात्मक दृष्टि से सुगम हो। यद्यपि जिस संस्करण का मूल पाठ लिया है पढने वालों को उपयोगी हों। अनेक पाठों के अर्थ में हिन्दी अनुवाद भी प्रायः उन्हीं का लिया है फिर भी अपनी भ्रान्ति होती है, वहीं टीका, भाष्य आदि का सहारा जागरूकता बरती है। अनेक स्थानों पर चा संशो-लेकर पाका अथ भी स्पष्ट किया गया है, व्याख्या का धन भी किया है। उपयुक्त तीन संस्थानों के अलावा अन्तर भी दर्शाया है। कुछ पाठों की पूर्ति के लिए वृत्ति, आगमोदय समिति रतलाम तथा सुत्तागमे (पुष्कभिक्खु छुणि, भाष्य आदि का भी उपयोग किया है। जी) के पाठ भी उपयोगी हुए हैं। पूज्य अमोलक ऋषि इस प्रकार पूरी सावधानी बरतो है कि जो विषय जी म. एवं आचार्य श्री आत्मारामजी म. द्वारा सम्पा- जहाँ है, वह अपने आप में परिपूर्ण हो, इसलिए उसके दित अनुदित आगमों का भी यथावश्यक उपयोग समान, पुरक तथा भाव स्पष्ट करने वाले अन्य आगमों किया है। के पाठ भी अकित किये हैं। मेरा दृढ़ विश्वास है कि मैं उक्त आगमों के सम्पादक विद्वानों व श्रद्धय मुनि- आगम ज्ञान के प्रति रुचि, श्रद्धा व भक्ति रखने वाले बरों के प्रति आभारी हूँ । प्रकाशन संस्थाएं भी उपकारक पाठकों को यह चरणानयोग, उनकी जिज्ञासा को तृप्त हैं। उनका सहयोग कृतज्ञ भाव से स्वीकारना हमारा करेगा, ज्ञान की वृद्धि करेगा तथा श्रुत मक्ति को और कर्तव्य है। अधिक सुदृढ़ बनायेगा। अब प्रस्तुत ग्रन्थ चरणानुयोग के विषय में भी कुछ इस महत्वपूर्ण ग्रन्थ को विस्तृत प्रस्तावना लिखने का कहना चाहता हूँ। दायित्व जैन समाज के सुप्रसिद्ध विद्वान डा० सागरमल चरणानुयोग जी जैन ने सवंया निस्पृह भावना के साथ बहन किया है। आगमों का सार आचार है-बंगाण किं सारो। बे जैन आचार शास्त्र के मर्मज्ञ है और बहुश्रुत हैं। प्रस्तावना में उन्होंने सभी विषयों पर तुलनात्मक दृष्टि से आयारो!.-आचारांग आगम तो अंगों का सारभूत उनके विचार किया है जो पाठकों के लिए उपयोगी होगा। आगम है ही, किन्तु आचार-- अर्थात् 'चारित्र" यह आगम का, श्रुत का सार है। ज्ञानस्य फलं विरतिः ज्ञान मैं प्रति कृतज्ञता का भाव रखता हूँ। का फल विरति है। श्रुत का सार चारित्र है। अतः दोनों भाग की शब्द सूची तथा विषय सूची बनाने चारित्र सम्बन्धी विवरण आगमों में यत्र-तत्र बहत अधिक का थंय सम्पादन कला निष्णात श्रीयुत श्रीचन्दजी सुराना मात्रा में मिलता है। ये भी कहा जा सकता है कि 'सरस' ने किया है। उनका सहयोग उल्लेखनीय रहेगा। "चारित्र" का विषय बसे विशाल या ग्रन्थ के सुन्दर ब शुद्ध मुद्रण में भी उनका महत्वपूर्ण धर्मकथानुयोग के समान चरणानुयोग भी वर्णन की दृष्टि योगदान रहा है। से विस्तृत है। अतः इसकी सामग्री अनुमान से अधिक हो अन्त में इस महान कार्य में प्रत्यक्ष-परोक्ष सहयोग गई है। इसलिए इसे दो भागों में विभक्त किया गया है। देने वाले सभी सहयोगी जनों के प्रति हादिक भाव से __"आचार" के प्रमुख पाँच विभाग हैं . १. ज्ञानाचार, कृतज्ञता व्यक्त करता हूँ। २. दर्शनाचार, ३. चारित्राचार, ४. नपाचार, ५. वीर्याPage Navigation
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