Book Title: Chaityavandan Parvamala Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar Publisher: Abhinav Shrut Prakashan View full book textPage 6
________________ [२] चैत्यवन्दन जीवाजीव पदार्थनु, करो नाण सुजाण, बीज दिन वासुपूज्य परे, लहो केवल नाण...४... निश्चय ने व्यवहार दोय, एकांते न ग्रहिये, अरजिन बीज दिन चवि, ओम जिन आगम कहिये...५... वर्तमान चोवीशिये, अम जिन कल्याण, बीज दिने केइ पामिया, प्रभु नाण निर्वाण...६... अम अनन्त चोवीशिये, हुआ अनन्त कल्याण, जिन उत्तम पद पद्मने, नमतां होय सुख खाण...७... श्री जिनपद पंकज नमो, सेवो बहु प्यार, बोज तणे दिन जिन तणां, कल्याणक सार...१... महा शुद बीजे जनमिया, अभिनन्दन स्वामी, वासुपूज्य केवल लह्यो, नमिले शिर नामी...२... फागण शुदी बीज वळी, चविया श्री अरनाथ, वदी वैशाखे बोजनी, शीतल शिवपुर साथ...३... श्रावण सुदी नी बीज तिथे, सुमति च्यवन जिणंद, ते जिनवर ने प्रणमतां, पामो अति आणंद...४... अतीत अनागत वर्तना, जिन कल्याणक जेह, बीज दिने चित्त धारिये, हयडे हरख धरेह...५... दुविध धर्म भगवंतजी, भाख्यो सूत्र मोझार, तेह भणो बोज आराधतां, शिवपंथ साधनहार...६... प्रह उठीने नित्य नमो, आणी प्रेम अपार, हंस विजय प्रभु नाम थो, पामो सुख श्रीकार...७... Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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