Book Title: Bikhre Moti
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Ashtmangal Foundation

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Page 14
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir "हे भव्यात्माओं! तुम्हारी आत्मा सहज मल से मलीन है। उसकी शुद्धि हेतु शुद्ध स्वरूप अरिहंत प्रभु के साथ अपने अन्तःकरण को जोड़ो, प्रभु नाम स्मरण में मस्त रहो।" “हे भव्यात्माओं ! तुम्हें अंततः सिद्ध स्वरूप प्राप्त करना है। अतः उनका निरन्तर ध्यान करते रहो।" _“हे भव्यात्माओं! सभी जीव तुम्हारे उपकारी है अतः उनके कल्याणार्थ 'शिवमस्तु सर्वजगतः” की भावना नित्य रखो।" "हे भव्यात्माओं! तुम्हारे आचरण से किसी जीव को असद्भाव धर्म के प्रति उत्पन्न न होने पाये, ऐसी सावधानी सदैव बरतो।" _ “हे भव्यात्माओं! भाषा समिति के अभाव में बहुत कर्म-बन्ध हो रहा है। सदैव हित, मित, सत्य एवं पथ्य वचन ही बोलो।" "तप का मूल धैर्य है।" For Private And Personal Use Only

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