Book Title: Bikhre Moti
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Ashtmangal Foundation

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Page 60
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जैन हो या ईसाई हो, यदि वह आत्मोत्थान का पथ प्रशस्त करता है तो मानव जाति के लिये वरदान है। पेकिंग या लेबल से हमें क्या वास्ता,? हमे तो माल शुद्ध चाहिये।" “ इस जगत में संपूर्णतया स्वतंत्र तो कोई भी नहीं जन्म से पहले नौ माह तक माँ के गर्भ की कैद होती है। जन्म के बाद भी माँ की नजरबंदी में दिन गुजरते हैं। उसके बाद पिता के अंकुश में जीवन रहता है। विवाह के बाद यह हवाला हस्तांतरित होता है और प्रारंभ होता है-पत्नी का बंधन, बुढ़ापा पुत्रों के बंधन में कटता है। बताओ कहाँ है, स्वंतत्रता? सचमुच जगत् का हर एक मनुष्य कैदी हैं। " ___“ भूलों के संस्कार लेकर ही हम जगत् में आये हैं। हर आदमी भूलों से भरा है। पर वह सचमुच महान् व होनहार हैं, जो भूलों से कुछ न कुछ सीखता हैं और उनको सुधारने का प्रयत्न करता है। " “ पाण्डित्य प्रकृति के रहस्यों को उद्घाटित करने में नहीं है, अपितु अपने जीवन के रहस्यों के विश्लेषण में है, उनको जॉचने परखने में हैं। प्रकृति उतनी रहस्यमय नहीं हैं, जितनी अपनी अंतरंग चेतना " 51 For Private And Personal Use Only

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