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" धर्म तो एक व्यवस्था हैं । फिर भले ही वह अलग-अलग सम्प्रदायों में विभाजित हो, वास्तविक धर्म का तो एक ही लक्ष्य होता है-प्राणी मात्र का कल्याण । साम्प्रदायिक भेदभाव मलीन मानसिकता के प्रतिफल हैं। आत्मा और धर्म का तो कोई भेद हो ही नहीं सकता ।
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“ यह शरीर और संसार सभी कुछ छोड़कर एक दिन चले जाना है मृत्यु जीवन की वास्तविकता है। संसार की जिन भौतिक उपलब्धियों के लिये आप पुरुषार्थ कर रहे हैं, उन्हें कल खो देना पड़ेगा। सभी सांसारिक उपलिब्धयों को मृत्यु व्यर्थ बना देगी । ”
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प्रेम में कभी दीवार नहीं होती
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जैसे स्वर्ण में रहे मैल को अग्नि दूर करती है। तथा दूध में मिले जल को हंस अलग कर देता है, उसी तरह प्राणियों की आत्मा में रहे मैल का निवारण तप द्वारा संभव होता है।
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“ काम और भोग क्षण मात्र का सुख देने वाले हैं। इसके बदले चिर कालीन दुःख मिलता है, इस में सुख कम और दुख ज्यादा हैं। मोक्ष-सुख का पक्का बैरी है - यह ।
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