Book Title: Bikhre Moti
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Ashtmangal Foundation

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Page 31
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org 66 जिसके मन में मोक्ष का सच्चा स्वरूप हैं, जिसकी वाणी में स्याद्वाद हैं। और जिसके जीवन में सच्चरित्र की सुगंधि हैं। ऐसे महापुरुष की शरण असहाय जीव के लिये माता की गोद के समान हैं । वात्सल्यरूपी अमृत का पान कराने वाली हैं । " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir “ प्रत्येक आत्म- द्रव्य में चेतना एक समान है। भले ही वह आत्मा निगोद की हो, नरक की हो, स्वर्ग की हो, या सिद्ध की हो, अनंतानन्त जीवों के साथ एकात्मता सिद्ध करने के लिये द्रव्यार्थिक नय की यह विचारणा आवश्यक है। मगर इसके अतिरिक्त पर्यायार्थिक- नय की दृष्टि साधक की सिद्धि संभव नहीं है 17 1 “ सामान्य जल बिंदु से सिंधु बनता है । "" आत्मा - आत्मा के मध्य भेद कर्म के कारण है । धर्म से वह भेद दूर होता है । यह धर्म ही आत्मा का स्वभाव है । आत्म स्वभाव रूप धर्म की प्राप्ति होने पर मोक्ष में आत्मा ज्योति में ज्योति की तरह मिल जाती है, वहाँ देह की दीवार नहीं होती, वहाँ आत्मानंद का अनुभव होता है। 22 For Private And Personal Use Only

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