Book Title: Bikhre Moti
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Ashtmangal Foundation

View full book text
Previous | Next

Page 51
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " आवेश में यह शरीर जहर उगलता हैं। सामायिक भाव में वही शरीर अमृत उत्पन्न करता हैं। आवेश को रोकिये समभावी बनिए।" “ खेत उत्तम हो व बीज उन्नत हो तो निःसंदेह फसल अच्छी ही होगी, उसी तरह अगर पात्र सुपात्र हो तो उसे दिया गया दान आपके लिये सर्वोत्कृष्ट सुख अवश्य सुलभ करवायेगा।" “ एक दगाबाज मित्र से तो कट्टर दुश्मन भला। " “ धर्म से उपार्जित पुण्य ही आपका सच्चा मित्र है, जो सब कुछ शेष है, वह तो हमारे शरीर की तरह हमारा साथ छोड़कर नष्ट होने वाला है। " “सम्यक्त्व आत्मा का मूल गुण है। जिसका सम्यक्त्व निर्मल एवं दृढ़ होगा, वह आज नहीं तो कल अवश्य मुक्ति पायेगा।" “ आत्मा की शक्ति अपूर्व है। उसकी तुलना संसार की किसी पार्थिव वस्तु से नहीं हो सकती। 42 For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90