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" इंसान ही एक ऐसा जानवर है, जिसके जीवन में कोई मर्यादा नहीं है।"
" स्वयं में खोए बिना, खोज पूरी नहीं होती, बिंदु से सिंधु बनने की यही व्यवस्था है। "
" पहले स्वयं को पूर्ण शुद्ध करो, सिद्ध स्वतः बन जाओगे।"
___“ पाप से घृणा करो, पापी से नही "
“ आलोचना एक भयानक चिंगारी है, जो मनुष्य के अंहकार रूपी बारूद के गोदाम में विस्फोट कर देती है ।"
“ अति उग्र पाप की सजा तुरंत मिलती है, उसी तरह अति शुभ कृत्य भी तुरंत परिणाम देता है।"
कहने को तो कहते रहते हो,
गाय हमारी माता है।
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