Book Title: Bikhre Moti
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Ashtmangal Foundation

View full book text
Previous | Next

Page 43
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir साथ तो वो क्या जले, मेरी राख को भी वो छूता नहीं।" फकीरा फकीरी इतनी दूर है, जितनी लंबी खजूर। चढ़ गये तो रस भरपूर है, गिर गये तो चकनाचूर।। --: मेरी अभिलाषा :चाह नहीं सुरपति बनकर, स्वर्ग लोक में मौज करूँ। चाह नहीं चक्रवर्ती बनकर, भूलोक पर शासन करूँ।। चाह नहीं मुझे दौलत की भी, वो तो भव भ्रमण बढायेगी। इस जीवन में भी मुझको, धर्म-विमुख बनायेगी।। चाह मेरी तो बस यही है, देनी न पडे, जनम मरण की फेरी। मुक्ति पथ गामी बनूँ मैं, __ यही है अभिलाषा मेरी।। कैसे पाऊँ शिव सुरत मैं 34 For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90