Book Title: Bikhre Moti
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Ashtmangal Foundation

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Page 42
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir “ जिस प्रकार, भ्रमर द्रुम-पुष्पों से रस ग्रहण करके अपना जीवन निर्वाह करता है, पर किसी भी पुष्प का विनाश नहीं करता, और स्वयं को भी तृप्त कर लेता है। उसी प्रकार इस लोक में, जो अपरिग्रही श्रेयार्थी मानव है। उन्हें दाता द्वारा दिये जाने वाले विविध आलंबनों से उतना ही लाभ उठाना चाहिये, जितने से अपना निर्वाह भी ठीक से हो जाय और उनका शोषण और विनाश भी न हो।" " वह सुख-सुख नहीं, जो अन्त में दुःख में परिणत हो जाय। सच्चा सुख तो शाश्वत सुख हैं।" __“ वैयावच्च धर्म महान् धर्म है। यह महान् तपस्वियों के लिये भी दुर्लभ ____“ अहिंसा, संयम और तप रूप शुद्ध धर्म ही उत्कृष्ट एवं मंगलमय है। जिसका मन सर्वदा धर्म में लीन रहता है। उसे देवता भी नमन करते हैं।" " कहते हैं मैं मर जाऊँगा, पर साथ कोई मरता नहीं, जलते हैं, हम अकेले, साथ कोई जलता नहीं, 33 For Private And Personal Use Only

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