Book Title: Bikhre Moti
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Ashtmangal Foundation

View full book text
Previous | Next

Page 35
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 66 जिन शासन- प्रदत्त संस्कार युक्त अगर हम हमारा जीवन बनाये तो, मनुष्यलोक भी, देवलोक बन सकता है 1 66 माया पाप है, पर वही माया अगर धर्म की आराधना के लिये की जाय, तो वह पाप नही पर धर्मरूप है । "" 44 जाता घमंडी जिदंगी का आदर करना है तो स्वयं के लिये क्षमाशील बनना होगा । जो लोग इस संसार से मुक्त होना चाहें, उन्हें हत्या से बचना होगा । " www.kobatirth.org "4 जो हृदय दूसरों को कष्टों से दुःखी होता देखकर भी द्रवित नहीं होता, वह पाषाणहृदयी कहलाता है । "1 " " यह लक्ष्मी जल में उठने वाली लहरों की तरह चंचल है। दो-तीन दिन ठहरने वाली है । अतः इसका उपयोग दान में करो। " == 66 है । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " --- तपश्चर्या द्वारा समग्र कर्मों का क्षय करने वाला शाश्वत सिद्ध हो 26 For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90