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-: मुक्तक संग्रह :“जो अधिक से अधिक अपने अंतर्शत्रुओं का प्राबल्य जीत सके, उसे ही महापुरुष कहते हैं।"
“निर्गुणता के प्रति आप जितना द्वेष पैदा करते जायेंगे, वैस-वैसे आपके अन्तः चक्षु खुलते जायेंगे।"
चारित्र पथ अति दोहिलो रे,
व्रत छे खांडा नी धार। एनो पालन केम थशे रे,
केम पले पंचाचार।
"बहुत गई, थोड़ी रही, थोड़ी भी अब जाय। उस थोड़ी के कारण, कहिं ताल बिगड़ न जाय।।"
“ धर्म-प्राप्ति के लिये बौद्धिक योग्यता चाहिये, बौद्धिक जडता नहीं।"
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