Book Title: Bikhre Moti
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Ashtmangal Foundation

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Page 25
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org 46 जिस प्रकार दावानल वन वृक्षों को जलाकर भस्म कर डालता है उसी प्रकार अनंत गुणों के धारक श्री जिनेश्वर प्रभु की भक्ति एवं बहुमान से कर्म-वन को भस्मीभूत अवश्य किया जा सकता है । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परमात्म भक्ति से आत्मा में ऐसी ज्योति प्रकट होती है कि हमारे अंतःकरण में व्याप्त सारी कुलक्षणताएँ जलकर राख हो जाती हैं । " “ आत्मबल ही मनुष्य की शक्ति का मूल स्रोत है 1 66 हे भव्यात्माओं ! अनन्त पुण्य प्रताप से तुम्हें अपार कृपा निधान अरिहंत परमात्मा के दर्शन सुलभ हुए है, वे ही परम आदर से स्मरण करने योग्य हैं। सेवा, भक्ति, उपासना के लिये श्रेष्ठतम पात्र हैं । परम पूजनीय हैं । तथा इन्हीं के शासन की आज्ञा ही परम भक्ति पूर्वक आचरणीय है । हे चेतन ! जागो, अपनी चेतना को सफल करो । 16 के अचिंत्य शक्तिशाली भगवान् ! अनन्त काल से संचित अनंत कर्मों समूह को दूसरा कोई संपूर्णतः क्षय करने में समर्थ नहीं है, सिवाय आपके । For Private And Personal Use Only ""

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