Book Title: Bikhre Moti
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Ashtmangal Foundation

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Page 23
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ___ " हे परमेश्वर! सभी प्राणियों को मुक्ति में ले जाने का आप में सामर्थ्य है, तो फिर क्रिया रहित दीन एवं आपके चरण कमलों में लीन, मेरी रक्षा आप क्यों नहीं करते? " “ वीतराग सर्वज्ञ भगवान् स्वभावतः अचिंत्य शक्ति से युक्त होते हैं। परम कल्याण स्वरूप होते हैं। वे जीव मात्र के परम बंधु, परम रक्षक, परमतारक एवं आधारभूत होते “ हे जिनेन्द्र जिस पुरूष के अन्तः करण में आपके चरण कमलों का युगल स्फुरायमान हो, वहॉ निश्चय ही तीन जगत् की लक्ष्मी सहचारिणी रूप आश्रय लेती हैं।" “ केवलज्ञान के प्रकाशक देवाधिदेव परमात्मा शरीर रहित होने पर भी, अपने अनन्तवीर्य प्रभाव से भव्यात्माओं को भव चक्र से मुक्त कराने में परम आलंबन है।" ___“ हे प्रभु! मैं निर्गुणियों का चक्रवर्ती हूँ। दुरात्मा हूँ। हिंसक हूँ। पापी हूँ। इस कारण से आपसे जुदा पड़ा हुआ हूँ। दुःख की खान ऐसे भव समुद्र में डूब गया हूँ। यही दुःख है।" 14 For Private And Personal Use Only

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