Book Title: Bikhre Moti
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Ashtmangal Foundation

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Page 28
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra "L " www.kobatirth.org पुद्गल अर्थात् पुष्ट होकर गल जाने वाला जड़ । रेत खाने से भूख नहीं मिट सकती । पुद्गल सेवा से आत्मा सुखी नहीं हो सकती । " जीव मात्र को अभयदान " यही सर्वोपरि दान है। " परभाव रमणीयता से स्वात्मा का प्रति पल भाव भरण हो रहा है, परमात्मा की अनन्य कृपा - प्रभाव से जब आत्मा अपने शुद्ध सिद्ध स्वरूप में लीन होने का प्रयत्न करती है, तो वह भाव जीवन कों प्राप्त करती है । " " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (" "" मन की वासना ही, मन को कलुषित करती है । 66 सुख का सच्चा सदन आत्मा है । आत्म हित को लक्ष्य में रखकर की गई साधना आध्यात्मिक कहलाती हैं। 1 जिसने आत्म-सुख का अनुभव कर लिया, अर्थात् आत्मा को जान लिया, उसने करने योग्य सब कुछ कर लिया और जानने योग्य सब कुछ जान लिया । ܙܕ 'आत्म भाव में जीवन, वही अमरता की ओर प्रयाण का प्रथम सोपान 19 For Private And Personal Use Only

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