Book Title: Bikhre Moti
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Ashtmangal Foundation

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Page 27
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हे कृपानिधान जिनेश्वर! संसार रूपी भयंकर अटवी में अनन्त काल से भटकते-भटकते आपश्री को नाथ स्वरूप प्राप्त कर मैं कृतकृत्य हो गया हूँ। मेरा जन्म सफल हो गया है। मैं दुःख के बोझ तले डूबा हूँ, कपटी-शिरोमणि एवं निर्भागी हूँ। पर अब मैंने आपके चरण-कमलों की शरण ले ली है। हे प्रभु! मेरी रक्षा करो। जिन शासन की सेवा का एक ही फल मांगता हूँ कि इस लोकोत्तर शासन की सेवा मुझे हर जन्म में प्राप्त हो। “ हम जिनेश्वर-प्रभु के सेवक हैं और सेवक वर्ग स्वामी के उचित स्वरूप का निरूपण करने में समर्थ नहीं हो सकता।' “ सब शास्त्रों का सार नवकार है। क्योंकि वह शाश्वत आत्मा का परम विशुद्ध स्वरूप ही है। नवकार-वासित को शाश्वत सिद्ध स्वरूप ही प्रिय होता है। संसार उसे असार लगता है। " 18 For Private And Personal Use Only

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