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-: एक क्षण :
"जीवन में सब कुछ एक क्षण है, एक क्षण की जागृति मोक्ष का सोपान बन जाती है। एक क्षण का प्रमाद, नरक की दीर्घ वेदना प्रदान कर जाता
जो हर क्षण का सही उपयोग कर जाता है, उसकी साधना सफल हो जाती है। प्रमादी कभी उन क्षणों का सही उपयोग नहीं कर पाता; ऐसा उसके लिये दुर्लभ है, वह क्षण भी दुर्लभ है, वह बार-बार नहीं आता। वह क्षण होता है, प्रथम सम्यक्त्व प्राप्त करने का क्षण।
सम्यक्त्व प्राप्ति के क्षण का सही उपयोग करो, स्वयं के लिये मोक्ष मार्ग निश्चित करो। मिथ्यात्व में तो आत्मा व स्थिति अनंतकाल से है। परंतु प्रथम उपशम सम्यक्त्व को प्राप्त करने का क्षण, उसके पहले ग्रंथि-भेदन का क्षण, ये दुर्लभ क्षण प्राप्त होते ही संसार मर्यादित हो जाता है। अधिक से अधिक अर्द्धपुद्गल परावर्तन काल तक का। इस क्षण को प्राप्त करने वालों को उच्च स्थिति प्राप्त हुई है, जहाँ से पतन की कोई संभावना नहीं है। बस यही क्षण दुर्लभ है।"
“मोक्ष का सुख पूर्ण अक्षय एवं शाश्वत है। इस पूर्णानंद स्वरूप को पाने के लिये यशोविजय जी महाराज ने फरमाया है किः
“श्री जिन-वाणी रूप श्रुत सागर में गहन अवगहन करने पर मुझे यह सार प्राप्त हुआ है कि जिसे पूर्णानंद स्वरूप परमात्म-पद की आकांक्षा उत्पन्न हुई हो, उसे स्व-आत्मा को परमात्म-भक्ति से ओत-प्रोत कर देना चाहिये"
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