Book Title: Bhuvanabhanukevalicariya
Author(s): Indahansagani, Ramnikvijay Gani
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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भुवणभाणुकेवलि-चरिय
सर्व संगनो त्याग करी चारित्रधर्मनु ज शरण लेवु. एक क्षणवार पण सर्वविरतिना संगनो त्याग न करवो. सबोध, सम्यग्दर्शन अने सदागमने अति संनिहित करी राखवा. बीजा प्रशम, मार्दव, आर्जव, संतोष, तप, संयम, सत्य, शौच, अकिंचनता अने ब्रह्मचर्य वगेरे सुभटोथी अने शीलांगादिथी सैन्यमां वधारो करवो. पछी सद्बोध अने सदागमे बतावेल विधि प्रमाणे अत्यंत सवशाळी बनीने पूर्वोक्त अनंत सैन्य सहित सज्ज थई तमारे मोहादि शत्रुओ साथे निरंतर युद्ध करवु आ प्रमाणे करवाथी चारित्र धर्मना सैनिको तमारा सहायक थशे अने तमे पण एमनी सहाय करी मोहारिसैन्यनो सर्वथा क्षय करी निवृत्तिपुरीना स्वामी थशो".
१२
आ प्रमाणे भगवान कुवलयचंद्र केवलीना वचनो सांभळी चित्तमां अति प्रसन्न थई, " आवो संयोग फरी प्राप्त थवो मुश्केल के" एम विचारी तत्वज्ञ पवा बलि नरेन्द्रे रतिसुंदर पटराणीना नयसार नामे ज्येष्ठ पुत्रने राज्यासन पर स्थापवानी सामंतोने आज्ञा करी. तेनो राज्याभिषेक करी पछी जिनमंदिरमां पूजा, महादान अने अमारि घोषणा करावी, महोत्वपूर्वक राजाओ, मांडलिको, मंत्रीओ, सामंतो अने नगरजनो व पांचसो मनुष्यो साये तथा पोतानी केली राणीओ साथे ते केवळो भगवंत पासे आव्या अने विधिपूर्वक दीक्षा ग्रहण करी.
पछी गुरुमहाराजे आपली प्रथमनी सर्व शिक्षाने तेमणे तहत ज अमलमां मूकी दोघी. सबोध अने पुण्योदयना प्रभावे थोडा ज दिवसोमां ते वारे अंग भणी रह्या अने अनेक अतिशय संपन्न बन्या. पछी अवसर जाणीने कुवलयचंद्र भगवंते तेमने पोताना पदे आचार्य स्थाने स्थापित करीने पोते शैलेशीकरणथी भवोपग्राही कर्मनी निर्जरा करी मोक्षे गया.
त्यारबाद सदुबोध अने सदागमे कहेल विधि प्रमाणे समरांगणमां मोहराजना सैम्यनु निकंदन करता अने घणा भव्य जोवोने मोहराजनी बिडंबनाथी बनावता बलि सूरिए विहार करी अनेक गाम, नगर, प्रदेशोने पावन कर्या.
एकदा अप्रमत्त गुणस्थाने पहोंचेला पवा तेमणे अकस्मात् विशुद्ध अध्यवसाय लक्षणवाळी क्षपकश्रेणिरूप खड्गयष्टि मेळवी अने तेना वडे प्रथम अनंतानुबंधी जारे कोधादिक कषायाने मूळथी हृणी नाख्या. पछी अविशुद्ध, मिश्र अने विशुद्ध वा त्रण रूपधारी मिथ्यादर्शनने पण निर्मूळ करी, अपूर्वकरण गुणस्थान कनो सर्श करी, अनिवृत्तिबादर गुणस्थाने पोंच्या. त्यां अप्रत्याख्यानावरण तथा प्रत्याख्यानावरणरूप आठ कषायोने मूळथी ज उच्छेदवा मांड्या. ते अर्धा हूणाया तेलामां नरकगति, नरकानुपूर्वी, तिर्यंचगति, तिथंगानुपूर्वी, एकेन्द्रिय, बेइंद्रिय, तेइंद्रिय अने चउरिंद्रियरूप चार जाति आतप, उद्योत, स्थावर, सूक्ष्म भने साधारण-ए नामकर्मनी तेर प्रकृतिभो अने निद्रानिद्रा, प्रचलाप्रचला अथीर्णाद्ध-पत्रण निद्राओ-प प्रमाणे सोळ प्रकृतिओनो तेमणे नाश कर्यो. पछी अक्षपित आठ कषायो, नपुंसक वेद, स्त्री वेद, हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, पुरुषवेद, संज्वलन क्रोध, मान, माया, अने लोभनो क्षय कर्यो. संज्वलन लोभनो क्षय करतां ते सूक्ष्म थई ने सूक्ष्म- संपराय नामना दशमा पगथीयामां जईने छुपाई रह्यो; पण त्यां जईने छेवढे क्षपक श्रेणिरूप खड्गथी तेमो घात कर्यो.
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