Book Title: Bhuvanabhanukevalicariya
Author(s): Indahansagani, Ramnikvijay Gani
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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भुवणभाणुकेवलि-चरियं
एक वखत विजयपुर नामे नगरना राजा चंद्रमौलिने उपदेश करता, तेणे पूछेला प्रश्न परथी भुवनभानु केवली पोताना समग्र जन्म-जन्मान्तरनी कथा कहे छे. समग्र संसार केवो रीते बाली रह्यो छे अने तेमां एक जोव केवी रीते विध विध योनिओमां फरी, पोताना कर्मनां परिणाम भोगवे ते भवनभान पोतानी कथाना व्यपदेशथी कहे छे. भवनभानना प्रथम भवथी मांडी अंतिम भव सुधीनी आ कथा 'भु. भा. के. च.' नी अंदर ज संक्षेपमा गा. १९५९ थी गा. २०५० सुधीमां रजू थई छे. नीचे तेनो ज भावानुवाद आप्यो छे.
वर्तमानकाळथी अनंतकाळ पूर्व चारित्रधर्म राजाना सहायक थई मोह शत्रुना सैन्यनो नाश करवा माटे, कर्म-परिणाम राजा बलि नरेन्द्रना जोवने असंव्यवहार निगोद नामना नगरमांथी बहार काढी व्यवहार निगोदमां लाव्यो. ते व्यतिकर जाणवामां आवतां कोपायमान थयेला मोह धगेरेए ते जीवने त्यां ज अनंतकाळ सुधी बांधी राख्यो. पछी कर्म-परिणाम तेने पृथ्वीकाय, मप्काय, तेजस्काय, पायुकाय, वनस्पतिकाय, बेइंद्रिय, तेइंद्रिय, चतुरिंद्रिय, पंचेंद्रिय, तिर्यच, नरक मने अनार्य मनुष्य जन्मोमां लई गयो. त्यांथो पण वारंवार बच्चे बच्चे मोहादि कुपित थई तेने पाछो निगोद आदिमां लई गया. ए प्रमाणे ते बधाए तेने अनंत पुद्गल परावर्त सुधी अति दुखितपणे ममाव्यो. पछी ते आर्यक्षेत्रमा अनंत वार मनुष्यस्व पाम्यो; परंतु क्यांक कुजातिभावथी, क्यांक कुळदोषथी, क्यांक जात्यंधता, बधिरता अने खंजस्व प. दोषथी, क्यांक कुष्टादि रोगथी, क्यांक अल्प आयुष्यना दोषथी, धर्मना नामने पण जाण्या सिपाय पूर्ववत् मोहादिक शत्रुओए तेने पकेंद्रियादिमां लई जई अनेक पुद्गल परावर्त सुधी ममाव्यो. ___ एकदा श्रीनिलय नगरमा धनतिलक श्रेष्ठीनो ते वैश्रमण नामे पुत्र थयो. त्यां “धन, कनक
आदिभावो भनित्य छ भने आपत्तिनु हरण करवा मात्र धर्म ज समर्थ छे. माटे हे जनो! तेन शरण स्वीकारो." आ प्रमाणेनी गाथा सांभळता सेने धर्म करवानी बुद्धि थर्ड. परंत ते मात्र कुरधिना कारणे थयेल होवाथी पापबुद्धि ज हती. तेथी ते स्वयंभू नामना त्रिदंडीनो शिष्य बन्यो. पटले त्यां पण मनुष्य-जन्म हारीने पालो संसारमा अनंतकाळ सुधी भन्यो. वळी अनंतकाळ पछी फरी मानवरूपे जन्म्यो, पण शुद्ध धर्मश्रवणना अभावे कुधर्मबुद्धिनी निवृत्ति न थई. कोई वखत सद्धर्मनु श्रवण थयु छतां पण सद्गुरु-प्समागमना भभावे, कोईवार माळस अने मोहना कारणे, कोई वार जडताथी, कोई वार अश्रद्धाथी कुधर्मबुद्धि न छटी. पटले कुधर्मबुद्धिनी प्रेरणाथी धर्मना बहाने पशुवधादि महापाप आचरी ने ते पूर्ववत् अनंत पुद्गल परावर्त सुधी फरी भटक्यो.
पछी विजयवर्धनपुरमा सुलस श्रेष्ठोनो नंदन नामे पुत्र थयो. त्यारे यथाप्रवृत्तिकरणथी कुहरिने छेदीने आयु सिवायना बीजा मोहादि सात कर्मोनी कंईक न्यून कोटाकोटी सागरोपम जेटली स्थिति करी अने ग्रंथिप्रदेश सुधो पहोंच्यो, परंतु तेने छेदवा समर्थ न थयो. त्यांथी अश्रद्धान, राग-द्वेषादिके तेने पाछो वाल्यो. आम अनंतवार पाछो फरीने दरेक वखते अनंतकाळ सुधी एकेन्द्रियादिकमां फर्यो.
एक वखत ते मलयपुरमा इन्द्र राजानो विश्वसेन नामे पुत्र थयो. ते भवमा अपूर्वकरणरूप कुठारथी तेणे ग्रंथिनो छेद कर्यो. पछी अनिवृत्तिकरणप्रवेशादि क्रमथी एटलो समय सम्यक्त्व पाम्यो. मोक्षतरुना मूळरूप अने अति दुर्लभ एवा ते सम्यक्त्व रत्नने पण पामीने
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