Book Title: Bhuvanabhanukevalicariya
Author(s): Indahansagani, Ramnikvijay Gani
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 12
________________ प्रस्तावना कुदृष्टि-रागना कारणे हारी गयो. पुनः धन श्रेष्ठिना सुभग नामे पुत्र रूपे अन्य भवमा स्नेहरागथी तेनो नाश को. गृहपतिना पुत्र सिंहना भवमा विषयरागथी तेनो ध्वस कर्यो. अने निनदत्तनी पुत्री जिनश्रीना भवमा द्वेषथी तेणे प्राप्त सम्यक्त्व गुमान्यु. पछी ब्राह्मणना पुत्र ज्वलन शिखना, धनंजय-पुत्र कुबेरना, धनाढ्यना पुत्र पद्मना अने अष्ठिपुत्र सोमदत्तमा जन्मोमां क्रमे क्रोध, मान, माया अने लोभथी ते सम्यक्त्व-रत्न हारी गयो. प्रमाणे मोहादि शत्रुने वश थई असंख्यात भयोमा सम्यक्त्व गुमाषी दीधु. धर्म श्रेष्ठीना पुत्र सुंदरना भवमां हिंसाथी, देशविरत एवा मणिभद्रना भवमा मृषावादथी, सोमदत्तना भवमा अदत्तादानथी, दत्तना भवमां मैथुनथी, धनबहुल श्रेष्ठीना भवमां परिग्रहथी अने रोहिणी श्राविकाना भवमा विकथारूप अनर्थदंडथी-ए प्रमाणे अपरापर मोहादिकना दोषथी समग्र सुखनी हेतुभूत एवी देशविरतिने पण ते असंख्य भवोमा हारी गयो. पछी अरविंदकुमारना भवमा महाकष्टे सर्वगुणोनी अधिकारिणी एवी सर्वविरति प्राप्त करीने क्रोध अने मानथी तेने हारी गयो. पछी अमात्यपुत्र चित्रना जन्ममां विषयनी सुखशीलताथो हारी गयो, राजपुत्र विजयसेनना भवमां तो ते सर्वविरति पामीने अगियारमे गुणस्थाने आरूढ थयो, पण त्यांथी देह अने उपकरणनी मूर्छाना कारणे पाछो पडयो. पछी श्रेष्ठीपुत्र पुंडरीकना भव ते पनः सर्वविरति पाम्यो, अने त्यां चौदपूर्व भण्यो. पण यावी उच्च पदवी निद्राने बश थई हारी गयो. ___ आ प्रमाणे अनंतानंत पुद्गलपरावोमां पूर्वोक्त रीते मोहादिक शत्रुओने वश थवाथी ते अनंत वार मनुष्यजन्म निरर्थक ज हारी गयो.. पछी पद्मस्थल नगरमा सिंहविक्रम नामे ते राजकुमार थयो. त्यां फरी सर्वपिरति पाम्यो. ते भवमां तेणे सम्यक्रीते सर्वविरतिनुं आराधन कर्यु अने मोहादिने अत्यंत क्षीण करी दीधा, तथा पुण्योदयने पुष्ट को. त्यांथी महाशुक्र नामना देवलोकमां लई भावी कमलाकर नगरमा श्रीचन्द्र राजानो भानु नामे पुत्र थयो. त्यां पण पहेलांनी जेम सर्वविरतिन' आराधन कयु, मोहादिकने अधिकतर क्षीण कर्या अने पुण्योदय विशेष पुष्ट कयों. त्यांची नवमा अवेयकमां जईने पछी पद्मखंडनगरमां इंद्रदत्त नामे राजा थयो. त्यां पण सम्यकरीते सर्वविरतिने आराधीने, मोहादिकने वधारे क्षीण करी, परम प्रकर्षथी पुण्योदयने पुष्ट बनावीने ते सर्वार्थसिद्ध विमानमां उत्पन्न थयो. त्यांथी व्यवीने ए जीव अंते बलि नरेन्द्र रूपे जन्म्यो . एकदा पोतानु आ समग्र चरित्र कुवलयचंद्र केवली पासे सांभळीने बलि नरेन्द संभ्रा. न्त बनी, केवलीने पगे लागी बोल्या-“हे भगवन् ! मोहादि शत्रुओ अति दुष्ट छ, माटे आ भवमां पण पूर्व प्रमाणे ज्यां सुधी तेओ मने छेतरे नहीं तेटलामां कृपा करीने मने चारित्रधर्म राजाना सैन्य साथे मेळवी द्यो, अने एवो उपाय बतावो के जेथी तेस्रो मारो पराभव ज करी न शके, अने हुँ ते बधानो विनाश करी शकुं." त्यारे कुवलयचन्द्र केवलीए कह्यु- "हे रोजन् ! तमारा जेवा माटे तेम कर योग्य म छे. माटे तमे चारित्र अंगीकार करो एटले हुँ तमने चारित्रधर्मना सैन्य साथे मेळवी दंड के जेथी मोहादि शत्रुओनो तमे क्षय करी शको. ते रिपुमोना क्षयनो उपाय आ प्रमाणे छे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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