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( २३ )। व्यवहृत होने वाले लौह और उपलौह योग ही असंस्कृत या क्रूड रूप के होते है। यही कारण है कि आधुनिक युग का लौह विबंधकारक होता है, परन्तु आयुर्वेदिक पद्धति से सिद्ध लौह के योग रेचक ।
____ गृह-चिकित्सा, गृह शल्यकर्म
( Home Medicine and House Hold Surgery) ऊपर मे बतलाया जा चुका है कि व्यक्तिगत स्वस्थवृत्त के नियम प्रत्येक गृहस्थ के घर से अपना आवास बना लिये है। उसी प्रकार आयुर्वेद की कायचिकित्सा मे भी सब समय किसी विशेषज्ञ की आवश्यकता नहीं रहती । अपने नित्य की भोजन-सामग्री और मसालों के रूप मे, पथ्यापथ्यों के विवेक के रूप में तथा सुने हुए उपदेशों के रूप मे वह घरेलू चिकित्सा का रूप धारण कर चुकी है। न केवल काय-चिकित्सा के क्षेत्र में, शल्य-चिकित्सा के क्षेत्र मे भी लघु-शस्त्र कमों ( House hold surgery ) के रूप मे, वह आज भी व्यवहार में आ रही है। इस प्रकार अति प्रचलित और लोक-ज्ञान का तिरस्कार नही किया जा सकता। आयुर्वेद-शास्त्र की अपेक्षा लोक को भी अपना गुरु मानते हए संकोच नहीं करता। लोक ही सब काों मे बुद्धिमानों का आचार्य है। इसलिए सांसारिक विषयों मे पुरुष लोक-प्रणाली का ही अनुसरण करे ।
आचार्य. सर्वचेष्टासु लोंक एव हि धीमतः । अनुकुर्यात्तमेवातो लौकिकेर्थे परीक्षकः ।। (वा० सू० ३)
पथ्यापथ्य
( Dietetics ) - आयुर्वेद का यह अंग भी बडा ही अद्भुत है। रोगानुसार पथ्य या अपथ्य की विवेचना तो आधुनिक चिकित्सा का भी एक प्रमुख अग बन रहा है। आहार-विहार सम्बन्धी नये विचारों की शोध जारी है। फिर भी एकान्तत. पथ्य, हिताहार, अहिताहार, विरोधी भोजन और विपमाशन आदि का आयुर्वेदीय वर्णन आज भी अपना स्वतन्त्र स्थान रखता है। सहस्रों वर्ष की परम्पराभों के अनुभव के अनन्तर प्रकाशित यह अनुभव सत्य है। मनुष्य शरीर के स्वस्थ रखने के लिए इनका भी ज्ञान परमावश्यक प्रतीत होता है। विरुद्धाशन से विविध प्रकार के रोग पैदा होते है। क्वचित् विरुद्धाशन का साक्षात् कुपरिणाम नहीं दिखायी पडे तो उसमे हेतु व्यक्ति की दीप्ताग्नि, तरुणावस्था, सात्म्य और उसका शारीरिक वल एव परिश्रम होता है जिससे विरोधी अन्न उसके लिए व्यर्थ हो जाते है और अहित नहीं करते। विरोधो अशन के सैकड़ों प्रसग ग्रंथों में सगृहीत है। यहाँ पर एक प्रचलित उदाहरण मछली और दूध का एक ही साथ सेवन