Book Title: Bhagwati sutram Part 01
Author(s): Abhaydevsuri, 
Publisher: Agamoday Samiti

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Page 566
________________ व्याख्या मृदुप्रभृतयः स्पर्शवन्तो वा नवनीतादयः 'एवं नेयवा सुभानाम'त्ति एवमिति-द्वीपसमुद्राभिधायकतया नेतव्यानि ६ शतके प्रज्ञप्तिः शुभनामानि पूर्वोक्तानि, तथा 'उद्धारों'त्ति द्वीपसमुद्रेषूद्धारो नेतव्यः, स चैवम्-'दीवसमुद्दा णं भंते ! केवइया उद्धा हा उद्देशः८ अभयदेवी समुद्राणामु | रसमएणं पन्नत्ता ?, गोयमा ! जावइया अड्डाइजाणं उद्धारसागरोवमाणं उद्धारसमया एवइया दीवसमुद्दा उद्धारसमएणं यावृत्तिः१|| त्सुतोदका| पन्नत्ता' येनैकैकेन समयेन एकैकं वालाग्रमुद्रियतेऽसावुद्धारसमयोऽतस्तेन । तथा 'परिणामो'त्ति परिणामो नेतव्यो द्वीप दिसू२५२ ॥२८२॥ समुद्रेषु, स चैवम्-'दीवसमुद्दा णं भंते ! किं पुढविपरिणामा आउपरिणामा जीवपरिणामा पोग्गलपरिणामा?,||8 | गोयमा ! पुढवीपरिणामावि आउपरिणामावि जीवपरिणामावि पोग्गलपरिणामावी'त्यादि । तथा 'सबजीवाणं ति सर्व|जीवानां द्वीपसमुद्रेषूत्पादो नेतव्यः, स चैवम्-'दीवसमुद्देसु णं भंते ! सबे पाणा ४ पुढविकाइयत्ताए जाव तसकाइ-| | यत्ताए उववन्नपुवा ?, हंता गोयमा ! असई अदुवा अणंतखुत्तो'त्ति ॥ षष्ठशतेऽष्टमोद्देशकः ॥६-७॥ परिणाम दिवसमुदा म भन्द्रियतेऽसावारसागरोवमास पैवम्वीपसमुद्राभिधायक ASCENERANGACAMACHARGENER ॥२८॥ द्वीपादिषु जीवाः पृथिव्यादित्वेनोत्पन्नपूर्वा इत्यष्टमोद्देशके उक्तं, नवमे तूत्पादस्य कर्मबन्धपूर्वकत्वादसावेव प्ररूप्यत इत्येवंसम्बन्धस्यास्येदमादिसूत्रम्Pा जीवे णं भंते ! णाणावरणिज्ज कम्मं बंधमाणे कति कम्मप्पगडीओ बंधति ?, गोयमा! सत्तविहबंधए वा अट्ठविहबंधए वा छविबंधए वा, बंधुद्देसो पन्नवणाए नेयवो ॥ (सू०२५२)॥ "जीवे ण' मित्यादि, 'सत्तविहबंधए' आयुरबन्धकाले 'अट्टविहबंधए'त्ति आयुर्बन्धकाले 'छबिहबंधए'त्ति Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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