Book Title: Bhagwati sutram Part 01
Author(s): Abhaydevsuri, 
Publisher: Agamoday Samiti

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Page 623
________________ दिगुणयुक्तत्वात् , 'अजीवावि भोग'त्ति अजीवद्रव्याणां विशिष्टगन्धादिगुणोपेतत्वादिति ॥'सवत्थोवा कामभोगि'त्ति |ते हि चतुरिन्द्रियाः पञ्चेन्द्रियाश्च स्युस्ते च स्तोका एव, 'नो कामी नो भोगि'त्ति सिद्धास्ते च तेभ्योऽनन्तगुणा एव, 'भोगि'त्ति एकद्वितीन्द्रियास्ते च तेभ्योऽनन्तगुणा वनस्पतीनामनन्तगुणत्वादिति ॥ भोगाधिकारादिदमाह| छउमत्थे णं भंते ! मणूसे जे भविए अन्नयरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववजित्तए, से नूणं भंते ! से खीणभोगी नो पभू उहाणेणं कम्मेणं बलेणं वीरिएणं पुरिसकारपरक्कमेणं विउलाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरित्तए ?, से नूणं भंते ! एयमढें एवं वयह ?, गोयमा ! णो इणढे समढे, पभू णं उठाणेणवि कम्मेणवि बलेणवि वीरिएणवि पुरुसक्कारपरक्कमणवि अन्नयराइं विपुलाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरित्तए, तम्हा भोगी भोगे परिचयमाणे महानिज्जरे महापज्जवसाणे भवइ । आहोहिए णं भंते ! मणुस्से जे भविए | अन्नयरेसु देवलोएसु एवं चेव जहा छउमत्थे जाव महापजवसाणे भवति । परमाहोहिए णं भंते ! मणुस्से जे भविए तेणेव भवग्गहणेणं सिज्झित्तए जाव अंतं करेत्तए ?, से नूणं भंते ! से खीणभोगी सेसं जहा छउमत्थस्सवि । केवली णं भंते ! मणुस्से जे भविए तेणेव भवग्गहणणं एवं जहा परमाहोहिए जाव महापज्ज वसाणे भवइ ॥ (सूत्रं २९१)॥ है 'छउमत्थे ण'मित्यादि सूत्रचतुष्क, तत्र च 'से नूणं भंते ! से खीणभोगि'त्ति 'से'त्ति 'असौ' मनुष्यः 'नूनं' | | निश्चितं भदन्त ! 'से'त्ति अयम(था)र्थः अथशब्दश्च परिप्रश्नार्थः 'खीणभोगि'त्ति भोगो जीवस्य यत्रास्ति तद्भोगि-शरीरं वचेव जहाशत्तए जाव व भव Jain Education International For Personal & Private Use Only Ww.jainelibrary.org

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