Book Title: Bhagwati sutram Part 01
Author(s): Abhaydevsuri, 
Publisher: Agamoday Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 631
________________ | 'से नूर्ण भंतेहत्थिस्से'त्यादि, अनन्तरमविरतिरुक्का सा च संयतानामप्याधाकर्मभोजिनां कथञ्चिदस्तीत्यतः पृच्छति'अहे'त्यादि, 'सासए पंडिए पंडियत्तं असासयंति अयमर्थः-जीवः शाश्वतः पण्डितत्वमशाश्वतं चारित्रस्य भ्रंशादिति ॥ सप्तमशतेऽऽष्टमोद्देशकः ॥७-८॥ पूर्वमाधाकर्मभोक्तृत्वेनासंवृतवक्तव्यतोक्ता, नवमोद्देशकेऽपि तद्वक्तव्यतोच्यते, तत्र चादिसूत्रम्| असंवुडे णं भंते ! अणगारे बाहिरए पोग्गले अपरियाइत्ता पभू एगवन एगरूवं विउवित्तए १, णो तिणहे समढे । असंवुडे णं भंते ! अणगारे बाहिरए पोग्गले परियाइत्ता पभू एगवन्नं एगरूवं जाव हंता पभू । से | भंते ! किं इहगए पोग्गले परियाइत्ताविउवह तत्थगए पोग्गले परियाइत्ता विउवति अन्नत्थगए पोग्गले परियाइत्ता विकुबह, गोयमा ! इहगए पोग्गले परियाइत्ता विकुबइ नो तत्थगए पोग्गले परिवाइत्ता विकुवा नो अन्नत्थगए पोग्गले जाव विकुवति, एवं एगवन्नं अणेगरूवं चउभंगो जहा छट्ठसए नवमे उद्देसए तहा इहावि भाणियचं, नवरं अणगारे इहगयं इहगए चेव पोग्गले परियाइत्ता विकुबइ, सेसं तं चेव जाव लुक्खपोग्गलं | निडपोग्गलत्ताए परिणामेत्तए ?, हंता पभू, से भंते ! किं इहगए पोग्गले परियाइत्ता जाव नो अन्नत्थगए पोग्गले परियाइत्ता विकुबह ॥ (सूत्रं २९९)॥ 'असंवुडे ण'मित्यादि, 'असंवृतः' प्रमत्तः 'इहगए'त्ति इह प्रच्छको गौतमस्तदपेक्षया इहशब्दवाच्यो मनुष्यलोक dan Education International For Personal & Private Use Only m.janelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 629 630 631 632 633 634 635 636 637 638 639 640 641 642 643 644 645 646 647 648 649 650 651 652 653 654 655 656