Book Title: Bhagwati sutram Part 01
Author(s): Abhaydevsuri, 
Publisher: Agamoday Samiti

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Page 592
________________ व्याख्या प्रज्ञप्तिः अभयदेवीया वृत्तिः १ ॥२९५॥ एव 'एगंत दंडे' त्ति एकान्तेन सर्वथैव परान् दण्डयतीत्येकान्तदण्डः, अत एव 'एकान्तबाल:' सर्वथा बालिशोऽज्ञ इत्यर्थः ॥ प्रत्याख्यानाधिकारादेव तद्भेदानाह कतिविहे णं भंते ! पञ्चक्खाणे पन्नन्ते ?, गोयमा ! दुविहे पञ्चक्खाणे पन्नसे, तंजहा- मूलगुणपञ्चक्खाणे य | उत्तरगुणपञ्चक्खाणे य । मूलगुणपञ्चक्खाणे णं भंते ! कतिविहे पन्नत्ते ?, गोयमा ! दुविहे पन्नत्ते, संजहा- सङ्घ - मूलगुणपच्चक्खाणे य देसमूलगुणपच्चक्खाणे य, सङ्घमूलगुणपञ्चक्खाणे णं भंते ! कतिविहे पन्नत्ते ?, गोयमा ! | पंचविहे पन्नत्ते, तंजहा-सङ्घाओ पाणाइवायाओ वेरमणं जाव सङ्घाओ परिग्गहाओ वेरमणं । देसमूलगुण| पच्चक्खाणे णं भंते ! कइविहे पन्नत्ते १, गोयमा ! पंचविहे पन्नत्ते, तंजहा -धूलाओ पाणाइवायाओ वेरमणं जाव थूलाओ परिग्गहाओ वेरमणं । उत्तरगुणपञ्चक्खाणे णं भंते ! कतिविहे पन्नत्ते ?, गोयमा ! दुबिहे पनसे, तंजहा- सम्युत्तरगुणपञ्चक्खाणे य देसुत्तरगुणपञ्चक्खाणे य, सव्युत्तरगुणपञ्चक्खाणे णं भंते ! कतिविहे पन्नते ?, गोयमा ! दसविहे पन्नत्ते, तंजहा - अणागय १ मइक्कतं २ कोडीसहियं ३ नियंटियं ४ चेव । सागार ५ | मणागारं ६ परिमाणकडं ७ निरवसेसं ८ ॥ १ ॥ साकेयं ९ चेव अद्धाए १० पञ्चक्खाणं भवे दसहा । | देसुत्तरगुणपश्चक्खाणे णं भंते ! कइविहे पन्नत्ते ?, गोयमा ! सत्तविहे पन्नत्ते, तंजहा- दिसिङ्घयं १ उवभोगप भोगपरिमाणं २ अन्नत्थदंडवेरमणं ३ सामाइयं ४ देसावगासियं ५ पोसहोववासो ६ अतिहिसंविभागो ७ | अपच्छिममारणंतिय संलेहणाझूसणाराहणता ( सूत्रं २७२ ) Jain Education International For Personal & Private Use Only ७ शतके | उद्देशः २ जीवादिज्ञा ता सुप्रत्याख्यानः मूलीत्तरभे दाःसू २७१ २७२ ॥२९५॥ www.jainelibrary.org

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