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भगवती सूत्र-य. १३ उ. ४ लोक का मध्य-भाग
भावार्थ - ६ प्रश्न - हे भगवन् ! लोक की लम्बाई का मध्य भाग कहाँ कहा गया है ?
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६ उत्तर - हे गौतम! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के आकाशखण्ड के असंख्यातवें भाग का उल्लंघन करने के बाद, लोक की लम्बाई का मध्य भाग कहा गया है। ७ प्रश्न - हे भगवन् ! अधोलोक की लम्बाई का मध्य भाग कहाँ कहा गया है ?
७ उत्तर - हे गौतम! चौथी पंकप्रभा पृथ्वी के आकाशखण्ड का कुछ अधिक अर्द्धभाग उल्लंघन करने के बाद, अधोलोक की लम्बाई का मध्य भाग कहा गया है ।
८ प्रश्न - हे भगवन् ! ऊर्ध्वलोक की लम्बाई का मध्य भाग कहां कहा गया है ?
८ उत्तर - हे गौतम ! सनत्कुमार और माहेन्द्र देवलोक के ऊपर और ब्रह्म देवलोक के नीचे, रिष्ट नामक तीसरे प्रतर में ऊर्ध्वलोक की लम्बाई का मध्य भाग कहा गया है ।
९ प्रश्न - हे भगवन् ! तिर्यग् लोक की लम्बाई का मध्य भाग कहां कहा गया है ?
९ उत्तर - हे गौतम! इस जम्बूद्वीप के मेरु पर्वत के बहुसम मध्यभाग ( ठीक बीचोबीच ) में रत्नप्रभा पृथ्वी के ऊपर और नीचे के दो क्षुद्र प्रतरों में, तिर्यग्लोक के मध्यभाग रूप आठ रुचक- प्रदेश कहे गये हैं, जिनसे ये दस दिशाएँ निकली हैं। यथा- पूर्वदिशा, पूर्वदक्षिण इत्यादि, दसवें शतक के प्रथम उद्देशक के अनुसार कहना चाहिए, यावत् 'दिशाओं के दस नाम हैं'तक कहना चाहिए ।
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विवेचन - लोकमध्य द्वार - लोक की लम्बाई चौदह रज्जू परिमाण है । उस का मध्यभाग, रत्नप्रभा पृथ्वी के आकाश खण्ड के असंख्यातवें भाग का उल्लंघन करने के बाद है । तिर्यग्लोक की लम्बाई अठारह सौ योजन है । तिर्यग्लोक के ठीक मध्य में - जम्बूद्वीप में
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