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भगवती सूत्र-ग. १३ उ. ६ उदायन नरेश की दीक्षा
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गति रूप संसार अटवी में परिभ्रमण करेगा। इसलिये अभीचि कुमार को राज्यारूढ़ कर, श्रमण भगवान महावीर स्वामी के पास यावत् प्रव्रज्या लेना, यह श्रेयस्कर नहीं है, अपितु अपने भानेज केशी कुमार का राज्याभिषेक कर प्रवजित होना मेरे लिये श्रेयस्कर है ।" इस प्रकार विचार करता हुआ उदायन राजा, वीतिभय नगर के मध्य होता हुआ अपने भवन के बाहर की उपस्थान शाला में आया और आभिषेक्य पट्टहस्ती को खड़ा रख कर नीचे उतरा । फिर राज सभा में आया और पूर्वदिशा की ओर मुँह कर के भव्य सिंहासन पर बैठा । तत्पश्चात् कौटुम्बिक पुरुषों को बुला कर इस प्रकार कहा-“हे देवानुप्रियो ! वीतिभय नगर को बाहर और भीतर से स्वच्छ करवाओ, यावत् कौटुम्बिक पुरुषों ने नगर को सजाई करके आज्ञा पालन का निवेदन किया। इसके बाद उदायन राजा ने कौटुम्बिक पुरुषों को आज्ञा दी-“हे देवानुप्रियो ! शीघ्र ही केशी कुमार को यावत् महा राज्याभिषेक की तैयारी करो। वर्णन ग्यारहवें शतक के नौवें उद्देशक के शिवभद्र कुमार के राज्याभिषेक के समान यावत् 'दीर्घायुषी होवो'तक कहना चाहिये, यावत् इष्टजनों से परिवृत्त होकर सिन्धुसौवीर प्रमुख सोलह देश, वीतिभय प्रमुख तीन सौ त्रेसठ नगर और आकर तथा मुकुटबद्ध महासेन प्रमुख दस राजा एवं अन्य बहुत से राजा तथा युवराजा आदि का स्वामीपन यावत् करते हुए और राज्य का पालन करते हुए विचरो"-ऐसा कहकर 'जय जय' शब्द बोलते हैं । केशी कुमार राजा बना । वह महाहिमवान् पर्वत के समान इत्यादि वर्णन युक्त यावत् विचरता है।
उदायन नरेश की दीक्षा
७-तएणं से उदायणे राया केसिं रायाणं आपुच्छड् । तएणं से केसी राया कोथुवियपुरिसे सद्दावेइ एवं जहा जमालिस्स तहेव
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