Book Title: Bhagvati Sutra Part 05
Author(s): Ghevarchand Banthiya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 501
________________ २६१८ भगवती सूत्र - श. १७ उ. ३ चलना के प्रकार विवेचन - योगों द्वारा आत्म- प्रदेशों का अथवा पुद्गल द्रव्यों का चलना ( काँपना ) 'एजना' कहलाती है। इसके द्रव्यादि पाँच भेद है । मनुष्यादि जीव द्रव्यों का अथवा मनुष्यादि जीव सहित पुद्गलों का कम्पन 'द्रव्य एजना' कहलाती है । मनुष्यादि क्षेत्र में रहे हुए जीव का कम्पन ' क्षेत्र एजना' कहलाती है । मनुष्यादि काल में रहे हुए जीव का कम्पन 'काल-एजना' कहलाती है। मनुष्यादि भव में रहे हुए जीव का कंपन 'भव-एजना' कहलाती है । और औदयिकादि भावों में रहे हुए जीव का कंपन 'भाव-एजना' कहलाती है । नैरयिक जीव, नरयिक शरीर में रह कर उस शरीर से जो एजना करते है. उमे 'नैरयिक द्रव्य - एजना' कहते हैं। इसी प्रकार नियंत्र, मनुष्य और देव सम्बन्धी द्रव्य एजना भी जान लेनी चाहिये । और इसी प्रकार क्षेत्रादि एजना के विषय में भी समझ लेना चाहिये । चलना के प्रकार ८ प्रश्न -कइविहा णं भंते ! चलणा पण्णत्ता ? ८ उत्तर - गोयमा ! तिविहा चलणा पण्णत्ता, तं जहा - सरीर चलणा, इंदियचलणा, जोगचलणा । ९ प्रश्न - सरीरचलणा णं भंते ! कड़विहा पण्णत्ता ? ९ उत्तर - गोयमा ! पंचविद्या पण्णत्ता तं जहा - १ ओरालिय सरीरचलणा जाव ५ कम्मगसरीरचलणा । १० प्रश्न - इंदियचलणा णं भंते! कइविहा पण्णत्ता ? १० उत्तर - गोयमा ! पंचविद्या पण्णत्ता, तं जहा - १ सोइंदिय चलणा जाव ५ फासिंदियचलणा । ११ प्रश्न - जोगचलणा णं भंते ! कइविहा पण्णत्ता ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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