Book Title: Bhagvati Sutra Part 05
Author(s): Ghevarchand Banthiya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 510
________________ भगवती सूत्र-श. १७ उ. ४ आत्मकृत मुख दुःख और वेदना २६९७ इस प्रकार ये सब बीस दण्डक हुए। विवेचन-ओघिक पांच दण्डक है । 'जं समयं' का अर्थ है-जिस समय में' । अनः समय की अपेक्षा पाँच दण्डक हैं । 'जं देसं' का अर्थ है-जिस क्षेत्र में' । अतः क्षेत्र सम्बन्धी पांच दण्डक हैं। 'जं पएम' का अर्थ है-'जिस प्रदेश में' | यहां ‘प्रदेश' शब्द से क्षेत्र का छोटा विभाग लिया गया है। अत: प्रदेश आश्रयी पांच दण्डक हैं । इस प्रकार कुल बीस दण्डक होते हैं। आत्मकृत सुख दुःख और वेदना ८ प्रश्न-जीवाणं भंते ! किं अत्तकडे दुक्खे, परकडे दुवखे, तदुभयकडे दुक्खे ? ८ उत्तर-गोयमा ! अत्तकडे दुक्खे, णो परकडे दुवखे, णो तदुभयकडे दुक्खे; एवं जाव वेमाणियाणं । ९ प्रश्न-जीवा णं भंते ! किं अत्तकडं दुक्खं वेएंति, परकडं दुक्खं वेएंति, तदुभयकडं दुक्खं वेएंति ? । ९ उत्तर-गोयमा ! अत्तकडं दुक्खं वेएंति. णो परकडं दुक्खं वेएंति, णो तदुभयकडं दुक्खं वेएंति; एवं जाव वेमाणियाणं । १० प्रश्न-जीवाणं भंते ! अत्तकडा वेयणा, परकडा वेयणापुच्छा । १० उत्तर-गोयमा ! अत्तकडा वेयणा, णो परकडा वेयणा, णो तदुभयकडा वेयणा । एवं जाव वेमाणियाणं । ११ प्रश्न-जीवाणं भंते ! किं अत्तकडे वेयणं वेएंति, परकडं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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