Book Title: Bhagvati Sutra Part 05
Author(s): Ghevarchand Banthiya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 519
________________ शतक १७ उद्देशक अधो अप्कायिक का मरण-समुद्घात १ प्रश्न - आउकाइए णं भंते ! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए समोहए, समोहणित्ता जे भविए सोहम्मे कप्पे आउकाइयत्ताए उववजित्तए० ? १ उत्तर - एवं जहा पुढविकाइओ तहा आउकाइओ वि सव्वकप्पे जाव ईसिप भाराए तहेव उववायव्वो, एवं जहा रयणप्पभआउकाइओ उववाइओ तहा जाव अहेसत्तमपुढविआउकाइओ उववायव्वो, एवं जाव ईसिप भाराए । * सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति || सत्तरसमे सए अट्टम उसी समत्तो ॥ भावार्थ - १ प्रश्न - हे भगवन् ! जो अष्कायिक जीव, इस रत्नप्रभा पृथ्वी में मरण-समुद्घात करके सौधर्म- कल्प में अष्कायिकपने उत्पन्न होने के योग्य हैं, इत्यादि प्रश्न | १ उत्तर - हे गौतम! जिस प्रकार पृथ्वीकायिक जीवों के विषय में कहा, उसी प्रकार अष्कायिक जीवों के विषय में भी सभी कल्पों में यावत् ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी तक उत्पाद कहना चाहिये । रत्नप्रभा के अष्कायिक जीवों के उत्पाद के समान यावत् अधः सप्तम पृथ्वी के अप्कायिक जीवों तक का यावत् ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी तक उत्पाद जानना चाहिये । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है-यों कह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं । ॥ सत्रहवें शतक का आठवां उद्देशक सम्पूर्ण || Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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