Book Title: Bhagvati Sutra Part 05
Author(s): Ghevarchand Banthiya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 517
________________ २६३४ भगवती सूत्र-श. १७ उ. ७ ऊर्ध्व लोकस्थ पृथ्वीकायिक का मरण-समुद्घात मारणान्तिक समुद्घात कर के जब जीव ईलिका गति से उत्पत्ति स्थान में जाता है, उस समय जोव के कुछ अंश पूर्व शरीर में रहते हैं और कुछ अंश उत्पत्ति स्थान में जाते हैं । इसे 'देश-समुद्घात' कहते हैं । जब जीव मारणान्तिक-समुद्घात से निवृत्त होकर मृत्यु को प्राप्त होता है, तब सभी आत्म-प्रदेशों को खींच कर गेंद की गति के समान एक साथ उत्पत्ति स्थान में जाता है, उसे 'सर्व-समुद्घात' कहते हैं । . ॥ सतरहवें शतक का छठा उद्देशक सम्पूर्ण । शतक १७ उद्देशक ७ ऊर्वलोकस्थ पृथ्वीकायिक का मरण-समुद्घात १ प्रश्न-पुढविकाइए णं भंते ! सोहम्मे कप्पे समोहए, समोहणित्ता जे भविए इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए पुढविकाइयत्ताए उववजित्तए से णं भंते ! किं पुवि०-सेसं तं चेव ।। __१ उत्तर-जहा रयणप्पभाए पुढविकाइए सव्वकप्पेमु जाव ईसिप्पन्भाराए ताव उववाइओ, एवं सोहम्मपुढविकाइओ वि सत्तसु वि पुढवीसु उववाएयवो जाव अहेसत्तमाए; एवं जहा सोहम्म. पुढविकाहओ सव्वपुढवीसु उववाइओ, एवं जाव ईसिपम्भारापुढवि Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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