Book Title: Bhagvati Sutra Part 05
Author(s): Ghevarchand Banthiya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 516
________________ भगवती मूत्र-श. १७ उ ६ नारक पृथिवीकायिक जीवों का मरण-समुद्घात २६३३ समुद्घात करता है और 'सर्व' से भी समुदघात करता है । जब देश समुद्घात करता है, तब पहले पुद्गल ग्रहण करता है और पीछे उत्पन्न होता है। जब सर्व से समुद्घात करता है, तब पहले उत्पन्न होता है और पीछे पुद्गल ग्रहण करता है । इस कारण यावत् पीछे उत्पन्न होता है । २ प्रश्न-हे भगवन् ! जो पृथ्वी कायिक जीव, इस रत्नप्रभा पृथ्वी में मरण-समुद्घात करके ईशान-कल्प में पृथ्वीकायिकपने उत्पन्न होने के योग्य हैं, इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न ? २ उत्तर-हे गौतम ! पूर्ववत् (सौधर्म के समान ) ईशान-कल्प और इसी प्रकार यावत् अच्युत, अवेयक विमान, अनुत्तर विमान और ईषत्प्रागभारा पृथ्वी के विषय में भी जानना चाहिये । ___ ३ प्रश्न-हे भगवन् ! जो पृथ्वीकायिक जीव, शर्कराप्रभा पृथ्वी में मरण-समुद्घात करके सौधर्म-कल्प में पृथ्वीकायिकपने उत्पन्न होने के योग्य हैं इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न ? ३ उत्तर-जिस प्रकार रत्नप्रभा पृथ्वी के पृथ्वीकायिक जीवों का उत्पाद कहा, उसी प्रकार शक राप्रभा के पृथ्वीकायिक जीवों का भी उत्पाद यावत् ई पत्रागभारा पृथ्वी तक जानना चाहिये । जिस प्रकार रत्नप्रभा के पृथ्वी कायिक जीवों की वक्तव्यता कही, उसी प्रकार यावत् अधःसप्तम पृथ्वी में • मरण-समुद्घात से समवहत जीव का ईषत्प्रागभारा पृथ्वी तक उत्पाद जानना चाहिये। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है-यों कह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं। विवेचन-जब जीव मरण-समुद्घात करके, अपने शरीर को सर्वथा छोड़ कर, गेंद के समान एक साथ-सभी आत्म-प्रदेशों के साथ उत्पत्ति स्थान में जाता है, तब पहले उत्पन्न होता है और पीछे पुद्गल ग्रहण रूप आहार लेता है । किंतु जब मरण-समुद्घात करके ईलिका गति से उत्पत्ति स्थान में जाता है, तब पहले आहार लेता है और पीछे उत्पन्न होता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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