Book Title: Bhagvati Sutra Part 05
Author(s): Ghevarchand Banthiya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 509
________________ २६२६ भगवती सूत्र-श १७ उ ४ आत्म-स्पष्ट किया. ५ प्रश्न-जं समयं णं भंते ! जीवाणं पाणाइवाएणं किरिया कजइ सा भंते ! किं पुट्ठा कजइ, अपुट्ठा कजइ ? ५ उत्तर-एवं तहेव जाव वत्तव्वं सिया जाव वेमाणियाणं, एवं जाव परिग्गहेणं, एवं एए वि पंच दंडगा। ६ प्रश्न-जं देसेणं भंते ! जीवाणं पाणाइवाएणं किरिया कजइ०? ६ उत्तर-एवं चेव जाव परिग्गहेणं, एए वि पंच दंडगा । ७ प्रश्न-जं पएसं णं भंते ! जीवाणं पाणाइवाएणं किरिया । कजइ सा भंते किं पुट्ठा कन्जइ ?-एवं तहेव दंडओ। ७ उत्तर-एवं जाव परिग्गहेणं । एवं एए वीस दंडगा। भावार्थ-५ प्रश्न-हे भगवन् ! जिस समय जीव प्राणातिपातिकी क्रिया करते हैं, उस समय वे स्पष्ट क्रिया करते हैं या अस्पृष्ट क्रिया करते हैं ? ५ उत्तर-हे गौतम! पूर्वोक्त प्रकार यावत् वे 'अनानुपूर्वीकृत' नहीं हैंतक जानना चाहिये और इसी प्रकार यावत् वैमानिकों तक तथा इसी प्रकार यावत् परिग्रह तक जानना चाहिये। ये पूर्ववत् पांच दण्डक होते हैं। ६ प्रश्न-हे भगवन् ! जिस क्षेत्र में जीव प्राणातिपातिकी क्रिया करते हैं, उसी क्षेत्र में स्पष्ट क्रिया करते हैं या अस्पृष्ट ? ६ उत्तर-हे गौतम! पूर्वोक्त प्रकार यावत् परिग्रह तक जानना चाहिये। ये पांच दण्डक हुए। ___७ प्रश्न-हे भगवन् ! जिस प्रदेश में जीव प्राणातिपातिकी क्रिया करते हैं, उस प्रदेश में स्पृष्ट क्रिया करते हैं या अस्पृष्ट ? ७ उत्तर-हे गौतम! पूर्वोक्त प्रकार यावत् परिग्रह तक जानना चाहिये। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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