Book Title: Bhagvati Sutra Part 05
Author(s): Ghevarchand Banthiya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 508
________________ भगवती मूत्र-श. १७ उ. ४ आत्म-स्पृष्ट क्रिया ने इस प्रकार पूछा-“हे भगवन् ! जीव प्राणातिपात क्रिया करते हैं ?" १ उत्तर-हां गौतम ! करते हैं। २ प्रश्न -हे भगवन् ! वह क्रिया स्पृष्ट (आत्मा द्वारा स्पर्श की हुई) को जाती है या अस्पष्ट ? २ उत्तर-हे गौतम ! वह स्पष्ट की जाती है, अस्पष्ट नहीं, इत्यादि प्रथम शतक के छठे उद्देशक के अनुसार यावत् वह क्रिया अनुक्रम से की जाती है, बिना अनुक्रम नहीं। इस प्रकार वैमानिकों तक जानना चाहिये । विशेषता यह है कि जीव और एकेन्द्रिय निर्व्याघात की अपेक्षा छह दिशा से आये हुए कर्म करते हैं। यदि व्याघात हो तो कदाचित् तीन दिशा, कदाचित् चार दिशा और कदाचित् पाँच दिशा से आये हुए कर्म करते हैं। शेष सभी अवश्य ही छह दिशा से आये हुए कर्म करते हैं। ३ प्रश्न-हे भगवन् ! जीव मृषावाद क्रिया (कर्म) करते है ? ३ उत्तर-हाँ गौतम ! करते हैं। ४ प्रश्न-हे भगवन् ! वह क्रिया स्पष्ट की जाती या अस्पृष्ट ? ४ उत्तर-हे गौतम ! प्राणातिपात के समान मषावाद, अदत्तादान, मथुन और परिग्रह के विषय में भी जानना चाहिये । ये पाँच दण्डक हुए। विवेचन-जीव प्राणातिपातादि जो क्रिया (कर्म ) करते हैं, वह क्रिया स्पृष्ट की जाती है. अस्पृष्ट नहीं । सभी जीवों के नियमा छह दिशा की अपेक्षा क्रिया की जाती है । किन्तु औधिक (सामान्य) जीव-दण्डक में और एकेन्द्रियों में निर्व्याघात हो तो छह दिशा से क्रिया की जाती है। व्याघात की अपेक्षा जव एकेन्द्रिय जीव, लोक के अन्त में रहे हुए होते हैं, तव ऊपर और आस-पास की दिशा में अलोक होने के कारण कम आने का संभव नहीं है, इसलिये वे यथा-सम्भव कदाचित् तीन दिशा से, कदाचित् चार दिशा से और कदाचित् पांच दिशा से आये हुए कर्म करते हैं । शेष जीव, लोक के मध्य भाग में होने के कारण नियम से छह दिशा से आये हुए कर्म करते हैं। क्योंकि लोक के मध्य में व्याघात नहीं हाता । प्राणातिपातादि पांच पापकर्म के स्पृष्ट और अस्पृष्ट विषयक पांच दण्ड क हैं । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530